पुष्करावती नगरी बसा अपनी राजधानी बनाई। ये दोनों प्राचीन महानगर अब तक पेशावर और तक्षशिला के नाम से विख्यात हैं । राम ने और भी राज्यों को जय करके उन्हें पुत्र - परिजनों में बांट सूर्यवंश की अनेक नई गद्दियां स्थापित कीं । राम ने ज्येष्ठ पुत्र कुश को अपना युवराज घोषित किया तथा विन्ध्य के दक्षिण में कुशस्थली में कुशावती नगर बसाकर उसे वहां का राज्यपाल बना दिया । लव को उत्तर कोसल की राजधानी श्रावस्ती में स्थापित किया , जो गोंडा या बहराइच जिले में है। लव ने लवपुर नगर बसाया , जो लाहौर के नाम से प्रसिद्ध हुआ । लक्ष्मण के पुत्र अंगद और चन्द्रकेतु को कारापथ के अन्तर्गत अंगद नगर तथा चन्द्रावती के राज्य दिए , जो मल्ल देश में हिमाचल उपत्यका में थे। सुबाहु को मथुरा तथा शत्रुघाती को विदिशा , जो अब भेलसा कहाता है, का राज्य मिला । इस प्रकार राम ने अपने भाइयों और अपने तथा भाइयों के आठों पुत्रों को पृथक् - पृथक् राज्य बांट दिए , जो सब अयोध्या की मुख्य गद्दी के अधीन थे। श्री राम ने सुग्रीव , विभीषण और शत्रुघ्न को मिलाकर केवल अपने बाहुबल से ग्यारह राजाओं का अभिषेक किया । अंग , बंग , मत्स्य , श्रृंगवेरपुर , काशी, सिन्धु , सौवीर , सौराष्ट्र दक्षिण कोसल , किष्किन्धा और लंका राम की मित्र शक्तियां थीं । इस समय तक आर्यों के इतिहास में राम से बढ़कर व्यापक , प्रभावशाली सार्वभौम सम्राट नहीं हुआ था । रामराज्य में आर्यों का प्रभाव सारे नृवंश पर छा गया और आर्यों की जाति सारी पृथ्वी पर श्रेष्ठ जाति स्वीकार कर ली गई । गोदावरी के दक्षिण तथा आर्यों के प्रबल राज्य स्थापित हो गए। पम्पा , मलय , महेन्द्र तथा लंका सुदूर दक्षिण के सब द्वीप - समूहों में रामनाम की महिमा तथा आर्यों का प्रबल प्रभाव स्थापित हो गया । राम के बड़े पुत्र कुश को दक्षिण कोसल तथा अयोध्या राज्य मिला। अवध के दो भाग करके राम ने श्रावस्ती लव को दी और अयोध्या कुश को । बड़े होने के कारण उन्हें दक्षिण कोसल भी मिला जो विन्ध्य में था । कुश राम की मृत्यु के बाद कुशावती में रहने लगे थे। इससे अयोध्या उजाड़ होने लगी , तब वहां के निवासियों की प्रार्थना पर वे फिर अयोध्या में चले आए । कुश का विवाह किसी तक्षक नाग की पुत्री कुमुदावती से हुआ था । दुर्जय नामक एक असुर से युद्ध करते हुए कुश की मृत्यु हुई । इनका पुत्र अतिथि बड़ा प्रतापी था । उसने पितृहन्ता को मारा। इनके वंशधर पारिपात्र के छोटे भाई सहस्राश्व ने दूसरा राज्य स्थापित किया। पारिपात्र के तीन पुत्र शल , दल , बल एक - दूसरे के पीछे राजा हुए । बल के वंश में राज्य चला । हिरण्यनाभ इसी वंश में हुए , जिन्होंने जैमिनी से योग सीख याज्ञवल्क्य को सिखाया । इनके पौत्र ‘ पर के पीछे इस वंश का राज्य नष्ट हो गया । दूसरी शाखा में सहस्राश्व की छः पीढ़ियां चलीं , जिसके अन्तिम राजा श्रुतायुध महाभारत संग्राम में लड़े थे। लव श्रावस्ती के नरेश बनाए गए थे। इनका वंश दीर्घकाल तक चला । लव के पौत्र राजा ध्रुवसिन्धु के दो विवाह हुए । प्रथम कलिंगपति की पुत्री मनोरमा से , दूसरा उज्जैनपति युधाजित् की पुत्री लीलावती से । राजा ध्रुवसिन्धु आखेट करते हुए सिंह द्वारा मारा गया और मन्त्रियों ने मनोरमा के पुत्र बालक सुदर्शन को राजा बनाया । इस पर कलिंग और उज्जैन - नरेश अपने - अपने दौहित्रों के पक्ष में लड़ने को तैयार हो गए। श्रृंगवेरपुर में भी युद्ध
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