लगी। परन्तु रावण तुरन्त ही सावधान हो गया । उसने गुस्से से लाल होकर सूत से कहा - “ अरे , तूने बिना ही मेरी आज्ञा के मेरा रथ शत्रु के सामने से कैसे हटा दिया ? अरे अनार्य, तूने तो मेरे कुल को ही दाग लगा दिया । मेरा चिरकालोपार्जित यश , वीर्य, तेज , प्रत्यय सभी नष्ट कर दिया । चल , चल , शीघ्र मेरा रथ शत्रु के सम्मुख ले चल - आज पृथ्वी रामरहित या रावणरहित होने वाली है। " सूत ने कहा - “ देव , मैं न भयभीत हूं , न मूढ़ हूं , न मैं शत्रु के प्रभाव में हूं , न प्रमत्त हूं , न आपकी महिमा से असावधान हूं। मैंने तो आपकी हित - कामना से , आपके यश की रक्षा करने की भावना से , प्रसन्नमन यह हितकर कार्य किया था , आपके विश्राम को विचार कर तथा रथ और अश्वों की सुरक्षा के लिए आवश्यक समझकर । मैंने स्वेच्छा से रथ नहीं हटाया । " " तो चल - चल जल्दी कर , अब मैं धीरज नहीं रख सकता । " । राम ने जब रावण का स्वर्ण - शैलोपम रथ फिर अपनी ओर आते देखा तो उन्होंने दिव्य ऐन्द्रधनु हाथ में लिया । उसकी टंकार से दसों दिशाएं गूंजने लगीं । इन्द्र ने दक्षिण पक्ष संभाला, कुमार कार्तिकेय ने वाम । पृष्ठ भाग पर लक्ष्मण, मुखाग्र पर गदापाणि विभीषण सुग्रीव, हनुमन्त , नील , नल , गय , गयन्द, जाम्बवन्त आदि सौ प्रमुख, गुल्मपति वानर सुभट । अब राम - रावण का सुप्रसिद्ध चिरस्मरणीय निर्णायक युद्ध होने लगा । दोनों रथ अचल पर्वत के समान एक - दूसरे के सामने डटे थे। दोनों ही अजेय वीर दिव्यास्त्रों का अद्भुत प्रयोग संहार कर रहे थे। इस अद्भुत युद्ध को देखने के लिए राक्षस और वानर भट भी सन्नद्ध हो गए । कालसर्प की भांति ज्वलन्त नाराच, शितिपक्ष छूट रहे थे, परस्पर टकराकर टूट रहे थे। लक्ष- लक्ष सुभट जड़वत् अचल रह यह अभूतपूर्व युद्ध देख रहे थे। अब राम ने अवसर पाकर चार कालबाणों से रावण के रथ के घोड़ों को मार गिराया । वायुवेगी अश्वों के मरने से क्रोधसंतप्त रावण ने बाणों से राम को बींध डाला । राम ने निरन्तर बाण -वर्षा करके रावण का रथ जर्जर कर दिया । वानर सुभटों ने एकबारगी ही रथ पर टूटकर रथ चूर - चूर कर डाला । इसी समय पांच बाण मार राम ने रावण के सारथि को मार गिराया । इस पर वानर- सैन्य गरज उठी । राक्षसों के हृदय हिल गए । अब रावण हाथ में अपना लोक प्रसिद्ध विकट परशु लेकर रथ से कूद पड़ा । राम ने भी गदा संभाली । अब दोनों का अद्भुत अतुल्य तुमुल द्वन्द्व होने लगा। दोनों वीर युद्धक्रुद्ध मत्त हाथियों की भांति परस्पर गुंथ गए । शत्रु -मित्र कहने लगे - इस राम- रावण के तुमुल संग्राम की तुलना यह राम - रावण युद्ध ही है । इसी क्षण सुअवसर जान इन्द्र के संकेत से राम ने फिर दिव्य धनुष उठाया । रथ को ग्रहण किया और सात आशीविष बाण एक साथ ही छोड़ दिए। वे बाण रावण के कण्ठ को फोड़ उसमें ही अटक गए । पर रावण मरा नहीं ,गिरा नहीं । तब राम ने देवसारथि मातलि से कहा - “ यैस्तु बाणै: मया मारीचो निहत :, खरश्च सदूषणो निहत : त इमे मम सायका : सर्वेऽपि मन्दतेजस: प्रात्ययिका:। " मातलि ने अश्वों को संभालते हुए कहा - " राघव , अजानन्निव किमनुवर्तसे , यन्महद् बाणं ब्रह्मदत्तममोघं भगवानृषिरगस्त्य : प्रादाद् तत्तस्मै प्रहर! " राम ने वह अमोघ कालबाण हाथ में ले , उसे अभिमन्त्रित कर फुर्ती से कान तक
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४५६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।