पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४५२

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" देव ! जगदीश्वर , जगज्जयी, महिदेव पौलस्त्य रावण का मन्त्रि -प्रवर सारण समस्त मन्त्रियों एवं प्रमुख राज- सभासदों के साथ शिविर द्वार पर उपस्थित होकर चरण दर्शन की प्रार्थना करता है । जैसी आज्ञा हो , यह दास जाकर उसे विज्ञापित करे । " राम ने ससंभ्रम कहा - “ युवराज , मन्त्रिप्रवर को आदर - सहित यहां ले आ । " सारण ने सम्मुख आकर बद्धांजलि निवेदन किया “ राजपदयुगल की मैं तथा ये राज सभासद् और सचिव वन्दना करते हैं । " राम ने आसन देकर कहा - “ राक्षस - मन्त्रिवर , यह दरिद्र राम तुम्हारे स्वामी की क्या सेवा कर सकता है ? " ___ सारण ने कहा - “ देव, राक्षसकुलपति मेरे स्वामी ने आपसे यह भिक्षा मांगी है कि आज से सात दिन तक आप वैर - भाव त्यागकर सैन्य - सहित विश्राम कीजिए। राजा अपने पुत्र की सक्रिया यथाविधि करना चाहता है । वीर सदैव ही शत्रु का सत्कार किया करते हैं । महाराज , आपके बाहुबल से वीरयोनि स्वर्ण-लंका अब वीर - शून्या हो गई है । अदृष्ट आपके अनुकूल है और राक्षसकुल विपत्तिग्रस्त है। इसलिए आप शत्रु का मनोरथ पूरा कीजिए। " “ मन्त्रिवर , तुम्हारा स्वामी मेरा परम शत्रु है। फिर भी मैं उसके दु: ख से दु: खी हूं । विपद् में शत्रु -मित्र मेरे लिए समान हैं । तुम लंका को लौट जाओ। मैं सैन्य सहित सात दिन तक अस्त्र नहीं ग्रहण करूंगा। ” राम ने शालीनता से उत्तर दिया । मन्त्री ने कहा - " रघुमणि , आप धन्य हैं ! हे महामते , आपको ऐसा ही उचित है । कुक्षण में जगज्जयी का आपसे वैर हुआ , अदृष्ट प्रबल है। " इतना कह , राम की प्रदक्षिणा कर , राक्षस - मन्त्री सारण ने सब मन्त्रियों और सभासदों के साथ राम -लक्ष्मण की वन्दना की और चला गया । सात वानर गुल्मपतियों ने कटक - द्वार तक जाकर राक्षस - मन्त्री को ससम्मान विदा किया । राम ने वानर गुल्मनायकों से कहा - “ वीरगण , अब आप भी वीर - वेश त्याग सात दिन विश्राम कीजिए। परन्तु मित्रवर विभीषण और सुग्रीव को इस सुयोग में समस्त सेना का निरीक्षण करके उसे भली - भांति व्यूहबद्ध कर लेना चाहिए । सात दिन बाद पुत्र - शोक दग्ध रावण प्राणों पर खेलकर काल की भांति हम पर टूटेगा । युवराज अंगद, तू एक सहस्र योद्धाओं को लेकर मित्र - भाव से राक्षसराज के निकट समुद्र - तट पर जा । सावधान रह वीर , मन में शत्रु -मित्र का विचार न करना । सौमित्रि को इस भय से नहीं भेजता हूं कि कदाचित् रावण को उन्हें देखते ही रोष आ जाए। इससे तू ही जा । तेरे प्रतापी पिता ने एक बार रावण को पराजित किया था , अब तू इस शिष्टाचार से उसे सन्तुष्ट कर । " __ अंगद ने स्वीकार किया । सुग्रीव ने कहा - " राघव , राक्षस रावण अब हत तेज हो गया है, उसका अन्त निकट है, तथापि हम सब कटक को पूर्ण व्यवस्थित कर लेंगे। "