" इस पर रावण का मामा प्रहस्त उत्तेजित होकर बोला - “ अरे भागिनेय, वीर पुरुषों में भाईचारा नहीं होता । " सुमाली ने भी उसे बढ़ावा देते हुए कहा - “निस्सन्देह, दिति और अदिति दोनों सगी बहनें ही तो थीं । दोनों ही प्रजापति कश्यप की पत्नी थीं । पर अदिति से देवों और दिति से दैत्यों का कुल चला। अपने पराक्रम से तथा मातृपक्ष से ज्येष्ठ होने से सारी पृथ्वी दैत्यों ही के अधिकार में थी । पर विष्णु ने छल - बल से दैत्यों का नाश करके देवों को आगे बढ़ाया । इसीलिए हम यह कोई नई मर्यादा नहीं स्थापित कर रहे हैं । ” । इतना कहकर सुमाली ने अपने ज्येष्ठ पुत्र प्रहस्त की ओर मर्मभेदिनी दृष्टि से देखा । प्रहस्त ने कहा - “ यही तो बात है, भागिनेय , फिर तेरे साथ तो हमारा सब दैत्य - दानवों का रक्त भी है , बल भी है । फिर लंका तो हमारी ही है। न्यायत : उस पर तो हमारा ही अधिकार है । अत : इस सम्बन्ध में तुझे सोचने -विचारने की कोई बात नहीं है । मामा के ये वचन सुनकर रावण ने कहा - " तो मातुल , तुम्हीं अब हमारे दूत बनकर लंका जाओ और जिस प्रकार ठीक समझो , कुबेर धनपति से प्रस्ताव करो। " सुमाली ने कहा - “ ऐसा ही हो । पुत्र प्रहस्त , तू यह मत भूलना कि यदि लंका हमारे हस्तगत न हुई तो फिर दैत्यों को कहीं खड़े रहने को स्थान नहीं है । मैंने बड़ी साधना की है और बहुत दूर तक विचार किया है । अब मेरी जीवन - भर की तपस्या को फलीभूत करना तेरा काम है, प्रहस्त ! ” प्रहस्त ने कहा - “ आज ही , अभी मैं लंका को तरणी द्वारा प्रस्थान करता हूं , और आशा करता हूं, आगामी ज्वार से पहले ही आ उपस्थित होऊंगा। तब तक आप सब बाली द्वीप पर ही रहना तथा बाली द्वीप को अधिकृत करने में विलम्ब न करना । " "विलम्ब कैसा , पुत्र , हम तो आज रात ही यह अभियान कर रहे हैं । " सुमाली ने साभिप्राय पुत्र को देखा , और फिर रावण की ओर देखकर कहा - "नगर तो तूने देख ही लिया ? " । रावण ने हंसकर कहा - “ देख लिया , सब राह -बाट देख आया हूं । किन्तु मातामह, हमें अभी एक और अभियान करना है। “ कहां रे ? " “ उधर , पर्वत की उपत्यका में , अर्जना -तट पर एक ग्राम है। " “ असुरों का है ? " " न , दैत्यों का । ” “ कहां के हैं वे ? " " काश्यप - सागर - तट से आए हैं । " " परन्तु दैत्यों का है, तो विग्रह क्यों ? " “ ऐसे ही। वह फिर कहूंगा । तो मातुल, शुभास्ते सन्तु पन्थान: ! " प्रहस्त ने चर्म का कटिबन्ध कमर में लपेटा और शूल हाथ में लेकर वह खड़ा हुआ । " एक योद्धा ले ले साथ । ” सुमाली ने कहा । नहीं, एकाकी ही जाऊंगा, योद्धा यहां कम हैं । यहां उनकी आवश्यकता है। ” प्रहस्त
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।