पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४४६

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लगा। निकुम्भ ने भाई को इस प्रकार गिरता देखा तो वह क्रोध से जलता हुआ भयंकर विशाल परिघ लेकर सुग्रीव पर टूट पड़ा। उस भीम परिघ की मार से सुग्रीव झूमकर धरती सूंघने लगा । तब बली मारुति भयंकर सिंहनाद कर अपनी गदा घुमाते निकुम्भ पर झपटे । दोनों ने एक ही काल में एक - दूसरे की छाती पर गदा का प्रहार किया । निकुम्भ का वर्म फट गया और उसकी छाती से खून की धार बह चली । तब मारुति ने उसे पृथ्वी पर गिराकर पैरों से रौंध डाला । इस प्रकार निकुम्भ को मरते देख अकम्पन ने रथ आगे बढ़ाया । ऋक्षराज जाम्बवन्त ने अकम्पन से विकट समर किया । दोनों महारथियों के द्वन्द्व को दोनों सैन्यों के भट चकित होकर देखने लगे । सहसा ऋक्षराज ने अकम्पन का सिर शिरस्त्राण सहित काट डाला । यह देख वानर गर्जना करने लगे। राम - कटक में दुन्दुभि बज उठी । इस हर्षनाद से अधीर रावण उदग्र हो समरांगण में आगे बढ़ा । अपने महारथियों का इस प्रकार विनाश होते देख रावण ने अमर्ष में भरकर सारथि से कहा - “ अरे , आज पुत्र इन्द्रजित् के हत हो जाने पर इन्द्र लंका में आया है ! तनिक देख तो , वह किधर है ? हमारा रथ वहां ले चल । " सारथि ने वायुवेगी रथ आगे बढ़ाया । रावण मायास्त्रों को चलाता , इन्द्र के व्यूह को छिन्न -भिन्न करता हुआ देवेन्द्र की ओर बढ़ता चला गया । हठात् कुमार कार्तिकेय ने अग्निरथ में बैठकर रावण का मार्ग रोक लिया । कुमार को सम्मुख देख रावण रथ रोक , हाथ जोड़कर बोला - “ देवकुमार, यह दास तो भगवान् रुद्र का किंकर है । देवाधिदेव ने मुझे रौद्र तेज से सम्पन्न किया है। आपको मैं कैसे वैरी - दल के साथ देख रहा हूं? नराधम राम पर आपका इतना अनुग्रह क्यों है ? छली सौमित्रि ने अधर्मपूर्वक मेरे पुत्र का निरस्त्र वध कर अपने हीन कुल को कलंकित किया है। आज मैं उसी कपटी योद्धा का वध करूंगा। कृपा कर राह छोड़ दीजिए । कुमार ने हंसकर कहा - “रक्षपति, आज मैं देवकार्यरत हूं। तू मुझे युद्ध करके आक्रान्त कर। " तब रावण ने हुंकार कर , कुमार पर आग्नेयास्त्र छोड़ा। कुमार कार्तिक शरजाल में छिप गए । __ इन्द्र ने पुकारकर कहा - “ हे शक्तिधर, रावण रौद्र तेज से परिपूर्ण है। देखो , मैं अभी उसका दर्प दलन करता हूं । ” इतना कह देवेन्द्र ने सहस्रों गन्धर्वो को रावण पर आग्नेयास्त्र वर्षा करने की आज्ञा दी । रावण ने दुर्धर्ष वेग से दिव्यास्त्र का निवारण कर ऐरावत के मस्तक पर तोमर का प्रहार करते हुए कहा - “ अरे निर्लज्ज , तेरी ही कुटिलता से मेरे पुत्र का वध हुआ । अब तूने पुत्र के वध होने पर लंका में आने का साहस किया। पर आज तू मेरे हाथ से लक्ष्मण की रक्षा नहीं कर सकता। " इतना कहकर क्रोध से अधीर हो अपना विकराल परशु ले रावण रथ से कूद पड़ा और उसने ऐरावत को परशु की मार से व्यथित कर दिया । ऐरावत भूमि पर गिर गया । तब इन्द्र ने हाथी से कूदकर रावण पर वज्र का प्रहार किया । इसी समय मातलि इन्द्र का रथ ले आया । रावण भी रथ पर आरूढ़ हुआ । दोनों भयानक महास्त्रों को धनुष पर चढ़ाकर छोड़ने लगे । इसी क्षण रावण की दृष्टि दूर क्षेत्र में युद्धरत सौमित्रि लक्ष्मण पर पड़ी । वे कभी रथ