कहेंगे वही अकेली युद्ध करेगी। चाहे धनुषबाण लीजिए या कृपाण। मल्लयुद्ध में भी हमें आपत्ति नहीं । अब जैसी आपकी रुचि हो , परन्तु शीघ्रता कीजिए, विलम्ब मेरी स्वामिनी को सह्य नहीं है। ” राम ने कहा - “ सुन्दरी , मैं अकारण किसी से विवाद नहीं करता। रावण मेरा शत्रु है, परन्तु रक्षकुल -बालाओं और कुलवधुओं से मेरा कुछ वैर नहीं है । तेरी स्वामिनी स्वच्छन्दता से लंका में प्रवेश करे। मेरी ओर से तू दानवनन्दिनी से कह दे कि उसकी पतिभक्ति की राम शत - सहस्र मुख से प्रशंसा करता है । राम का जन्म वीर - कुल में हुआ है । तेरी स्वामिनी वीर पत्नी एवं वीरांगना है । धन्य है इन्द्रजित् और धन्य है प्रमिला सुन्दरी दैत्यबाला । मैं धनहीन , वनवासी राम तुझे तेरे उपयुक्त प्रसाद देने योग्य नहीं हूं , केवल तुम सबको मैं आशीर्वाद देता हूं, तुम प्रसन्न रहो! " ___ इतना कह श्री राम ने हनुमान् से कहा - “वीर मारुति, वामादल को शिष्टाचारपूर्वक सन्तुष्ट कर तुरन्त लंका के द्वार पर छोड़ आओ। " । दूती सीतापति को प्रणाम कर चली गई। राम ने हंसते हुए विभीषण से कहा - “ पश्यामस्तावत्ते पुत्रवधूम् । " विभीषण , राम , सुग्रीव ने बाहर देखा -किंकरियों की हुंकार , घोड़ों की हिनहिनाहट तथा शस्त्रों की झनझनाहट के बीच रत्नजटित पताका वायु में उड़ाती हुई, रथों को दुलकी चाल पर नचाती हुई , अश्वों के पैरों में धुंघरू छमछम बजाती हुई , वह वामा - सैन्य राम की सैन्य के बीच इस प्रकार चली जा रही थी जैसे दो पर्वतों के बीच पहाड़ी नदी दाव -पेच खाती हर- हर करती बह रही हो । सबसे आगे मालिनी , कृष्णवर्ण घोड़े पर हाथ में हेमदण्ड लिए, उसके पीछे वाद्यंकरी वीणा, मुरज , बांसुरी, मृदंग, मंदिरा बजाती हई । उनके पीछे वीरांगनाओं से घिरी शूलपाणि दैत्यबाला प्रमिलासुन्दरी किरीटधारिणी। दुर्जय वामादल अथाह राम कटक पर उपेक्षा की दृष्टि डालता , धनुष -टंकार करता , हुंकार करता, खड्ग चमकाता , शूल हिलाता, तिरस्कार सूचक अट्टहास करता , वीरमद में मत्त चला जा रहा था । राम ने विभीषण से कहा - “मित्र , यह तो अत्यन्त अद्भुत है । ऐसा तो कहीं न देखा , न सुना । कौन है यह वामाविभूषणा वीरबाला ? इसका तेजदर्प अतुलनीय है । " विभीषण ने हंसकर कहा - "रघुमणि , कृतान्त - सम कठिन कृपाण , जग -विख्यात कालनेमि दानव की यह इकलौती बेटी है । यह महाशक्ति अंश से जन्मी है । विक्रम से इस दानवी को पराजय करना अशक्य है। देवपति इन्द्र को अपने अमित विक्रम से बांधनेवाला इन्ददमन मेघनाद इसके पदतल में निवास करता है। इस सुन्दरी ने उस महाकाल मत्तगजेन्द्र को अपनी स्नेह - शृंखाला में बांध रखा है । यह वीरांगना प्रमिला अपने प्रेमालाप में उस कालाग्नि - सम रावणि को भुलाए रखती है। इसी से देवलोक में देव , नागलोक में नाग और नरलोक में नर सुख की नींद सो पाते हैं । " ___ “ सत्य है मित्र, अवश्य ऐसा ही है । दो बार उस दुरन्त रावणि ने मुझे पराभव दिया है । आप मित्रों ने यदि मेरी और सौमित्र की प्राणरक्षा न की होती तो मैं तो समाप्त हो गया था । सात दिन से रावणि काल - समर कर रहा है । अब भोर ही में फिर काल - युद्ध होगा। मैं क्या करूं , कैसे यह रावणि तुरन्त मारा जाए ? अरे, अब तो भीमबाहु रावणि के साथ यह
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