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दिव्य धनुष न हो , तब तक मेघनाद को मारना शक्य नहीं है । उस दिव्य अक्षय नाग तूणीर और दिव्य धनुष ही के द्वारा वह रौद्र कौशल से सम्पन्न हो अदृश्य रह चतुर्मुखी बाण -वर्षा कर सकता है। स्वयं अलक्ष्य रह शत्रु को लक्ष्य बना सकता है । प्रतापी से प्रतापी शत्रु को नागपाश में बांध सकता है । राम पादातिक हैं , उनके पास नाग तूणीर नहीं , नाग- धनुष भी नहीं , तब कैसे वे सम्मुख समर में इस दुरन्त मेघनाद को मार सकते हैं ? पुरन्दर ने अपना दिव्य रथ , जो अभेद्य और मनोरम था , सारथि मातुल - सहित राम की सेवा में भेजने का संकल्प कर लिया । साथ ही दिव्य रौद्र धनुष और रौद्र तूणीर, जैसे भी सम्भव हो , राम के लिए प्राप्त करने तथा राम पर देवाधिदेव रुद्र को सदय करने के लिए कृतोद्यम हुआ ।