पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४०५

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सुनकर त्रिदिव देव प्रसन्न हो धन्य - धन्य कहने लगे । देवेन्द्र के आदेश से गन्धर्वो ने देवर्षि को हेमपात्र में मधुपान कराया , सोमपान कराया । सोमपान कर , मधुपान कर देवर्षि नारद ने हर्ष और सन्तोष प्रकट करते हुए हंसकर कहा - " हां , देवेन्द्र के औत्सुक्य का कारण क्या है ? " “ देवर्षि, वह दुरन्त रावणि, जिसका मुझ देवेन्द्र को तीर्थोदक से ऐन्द्राभिषेक करना पड़ा, मेरे औत्सुक्य का विषय है। " । “ महिदेव पर तो दाशरथि राम ने अभियान किया है, अभी दूत गन्धसंजीवनी ले गया है। " " गन्धसंजीवनी से क्या होगा, दुरन्त रावणि तो मरेगा नहीं। " __ “ कैसे मरेगा , उसके पास नागसिद्ध अक्षय तूणीर है , दिव्यधनुष है, धूर्जटि रक्षकुल पर प्रसन्न हैं ? रावणि रौद्रतेज से सम्पन्न है। " " तो जब तक यह दुरन्त रावणि मरता नहीं, देवलोक में देवेन्द्र की मर्यादा नहीं “किन्तु देवेन्द्र, मृत्युञ्जय रावणि देवाधिदेव से दिव्यास्त्र पा , दिव्य रणकौशल सीख , अदृष्ट रह , स्वयं अलक्ष्य हो , शत्रु को लक्ष्य कर सकने में समर्थ है । सम्मुख युद्ध में वह नहीं मर सकता । " “ देवर्षि , ऐसा कोई उपाय नहीं है? " __ " है देवेन्द्र , धूर्जटि की सेवा में जाएं , धूर्जटि को राम पर सदय करें । कुमार कार्तिक के पास वैसा ही अक्षय नाग - तूणीर और दिव्य धनुष है, वह प्राप्त करके राम को दें , तभी मेघनाद मर सकता है। " " देवाधिदेव रुद्र क्या राम पर यह अनुग्रह करेंगे ? " " वे रावण पर प्रसन्न हैं । रावणि उनका शिष्य और वरलब्ध पुरुष है। धूर्जटि को प्रसन्न करना कठिन है, परन्तु देवेन्द्र यदि शैलनन्दिनी पार्वती को अनुकूल कर सकें तो काम बन सकता है । " “ शैलनन्दिनी क्या सदय होंगी ? " “ शची पौलोमी यदि जाएं तो असम्भव नहीं। " " तो हम दोनों ही देवाधिदेव की सेवा में जाते हैं । आपने अच्छी सम्मति दी । " “ और भी बात है। " “ वह क्या ? " “ राम पादातिक है, देवेन्द्र उन्हें अपना दिव्य रथ लेकर मातुल को भेज दें । " “ ऐसा ही होगा देवर्षे? ” देवेन्द्र के संकेत से गन्धर्षों ने देवर्षि वामदेव नारद को फिर मधु दिया , सोमपान कराया और विदा किया । देवेन्द्र जानता था कि मेघनाद के पास नागसिद्ध अक्षय तूणीर और दिव्य धनुष है , जो उसे देवाधिदेव रुद्र की कृपा से प्राप्त हुआ है । रावण रौद्रतेज से सम्पन्न है । धूर्जटि उस पर कृपालु हैं । जब तक राम के पास भी रौद्रास्त्र न हो वैसा ही नागसिद्ध अक्षय तूणीर न हो ,