संभाला। उन्होंने एक कोण में पीछे हटकर अपने गुल्मों को व्यूहबद्ध किया । धूम्राक्ष मार करता हुआ धंसा ही चला गया । अब अवसर पाकर एक बगल से हनुमान् ने तथा दूसरी ओर से नील ने उसे धर दबोचा। जैसे सरौते के बीच सुपारी कटकर दो टूक हो जाती है, उसी प्रकार धूम्राक्ष का व्यूह बीच से कट गया । दोनों खण्ड वानरों ने घेर लिए। धूम्राक्ष तनिक भी विचलित हुए बिना विकट युद्ध करने लगा । उस समरांगण में ऐसा घमासान मचा कि शत्रु मित्र का भी ध्यान न रहा । धूम्राक्ष ने तीन दिन विकट युद्ध किया । अन्त में महावीर मारुति और धूम्राक्ष का द्वन्द्व हुआ। बहुत देर तक दोनों वीरों ने गदा युद्ध किया । अन्त में उनकी गदाएं परस्पर टकराकर टूट गईं । तब दोनों वीर गुंथ गए । अन्त में अवसर पाकर मारुति ने धूम्राक्ष का पैर पकड़कर पत्थर की शिला पर दे मारा, जिससे उसका भेजा फटकर निकल गया , सिर चकनाचूर हो गया । धूम्राक्ष को मरा देख राक्षस भयभीत होकर भागने लगे । वानरों ने हर्ष से जय जयकार किया । अब मायावी वज्रदंष्ट्र दस गुल्मों का अधिनायक आगे बढ़ा । युद्धोन्मत्त वज्रदंष्ट्र दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने लगा , जिससे वानरों की सेना त्राहि माम्- त्राहि माम् करने लगी । रथ की नेमिका, धनुष की टंकार, भेरी और मृदंग का तुमुल नाद आकाश में व्याप गया । पाशधारी यम की भांति वज्रदंष्ट्र वानरों को कालरूप दीखने लगा । बड़े- बड़े धैर्यवान् वानर उसे देखकर भागने लगे । यह देख अंगद वज्रगर्जना कर उसके सम्मुख आए। दोनों वीरों में मुहूर्त भर शूल , शक्ति , मुद्र , परशु से द्वन्द्व हुआ । उनके चारों ओर राक्षस और वानर विकट समर कर रहे थे। अन्तत: वजदंष्ट्र अंगद के चंगुल से छूट , दूर हट गया तथा रथ पर आरूढ़ हो बाण-वर्षा करने लगा। उसने तीन दिन निरन्तर युद्ध किया । अन्त में अंगद से उसका द्वन्द्व हुआ । उसने काकपत्र बाणों से अंगद को जर्जर कर दिया । अंगद ने विषम पराक्रम से गदा से उसके रथ को तोड़ , सारथि और घोड़ों को मार दिया । विरोध होने पर वज्रदंष्ट्र भूमि पर खड़ा हुआ। इसी समय अंगद ने उसकी छाती में गदा का प्रहार किया । इस पर वह झूमता और रक्तवमन करता हुआ अपनी वज्रमुष्टि में गदा लिए ही भूमि पर गिर गया । पर कुछ देर में उठकर उसने अंगद की छाती पर गदा - प्रहार किया , जिससे अंगद रक्तवमन करने लगा। फिर अंगद के प्रहार से उसकी गदा टूट गई । तब दोनों गुंथकर लात - घूसों से लड़ने लगे। लड़ते - लड़ते दोनों ही रक्त - वमन करने लगे। फिर दोनों ने ढाल - तलवार से असि - युद्ध किया । लड़ते - लड़ते थककर वे घुटनों के बल बैठ गए। पर दूसरे ही क्षण अंगद ने उछलकर उसका सिर काट लिया । वानर हर्ष से चिल्ला उठे । राक्षस भयभीत होकर भागने लगे। __ वज्रदंष्ट्र की मृत्यु से संतप्त देवान्नक, त्रिमूर्धा, महोदर और त्रिशिरा काल - भैरव की भांति इक्कीस गुल्म सेना से आवृत्त आगे बढ़े । ये सभी राक्षस राजपुत्र महारथी योद्धा थे । इनके रथ मेघ के समान गर्जते हुए चले । अब ऐसा युद्ध हुआ कि धूल से आच्छादित संग्राम भूमि में रथ , ध्वजा - पताका, ढाल - तलवार कुछ भी न दीख पड़ी । अपने - पराए का ध्यान छोड़ युद्धमत्त वानर और राक्षस , जो सम्मुख पड़ा उसी के प्राण लेने लगे । युद्धभूमि शवों से , टूटे - फूटे रथों से , मरे - अधमरे हाथियों घोड़ों और योद्धाओं से पट गई । सहस्रों भीमकर्मा वानर परिघ घुमा - घुमाकर राक्षसों का दलन कर रहे थे। सेनापति त्रिशिरा में असीम बल था । वह अप्रतिहत गति से वानरी सैन्य को चीरता बढ़ा आ रहा था । बढ़ते हुए वह वहां आ
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३८९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।