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और जय - जयकार करने लगे। हर्षाश्रुपूर्ण लोचनों से राघवेन्द्र विभीषण और सुग्रीव से गले मिले। फिर गरुड़देव को अंक में भर कहा - “ मायावी इन्द्रजित् ने अदृश्य रहकर अपूर्व कौशल से हमें शरविद्ध कर दिया , हम महान् संकट में पड़ गए थे। आपकी महती कृपा से हमें पुनर्जीवन मिला । हमारे प्राण आपके कृतज्ञ हैं । ” यह कह राघव ने उनका आलिंगन किया । गरुड़ ने कहा - “ अच्छा हुआ , रावण के मनोरथ पूरे होने से पूर्व ही मैं आ पहुंचा । अब आपकी जय हो रामभद्र? मैं चला। " गरुड़ ने राम की प्रदक्षिणा की और चला गया । राम - कटक में इसी क्षण दुन्दुभि बज उठी। वानरों के जयनाद से लंकापति जड़ हो गए ।