102. राम –व्यूह राम, लक्ष्मण, सुग्रीव , विभीषण, अंगद, हनुमान् और जाम्बवन्त सहित शरभ , सुषेण , मैन्द , द्विविद, गज , गवाक्ष, कुमुद , नल , नील आदि यूथपों और सेनानायकों की युद्ध समिति बैठी । राम ने कहा - “प्रथम गदापाणि रक्षेन्द्र विभीषण अपना मत कहें । " __ “ महाराज , मेरी आज्ञा से मेरे चारों मन्त्री, अनल, पनस ; सम्पाति और प्रमति वेश परिवर्तित कर लंका में जा , वहां की सब गतिविधि और व्यवस्था देख आए हैं । लंका के पूर्व द्वार का रक्षक प्रहस्त है और दक्षिण के महाबली महापाव और महोदर हैं । पश्चिम द्वार पर इन्द्रजित् मेघनाद नियुक्त है और उत्तर द्वार शुक , सारण आदि राक्षस सेनाधिपतियों और मन्त्रियों - सहित स्वयं राक्षसराज रावण ने अपने अधिकार में लिया है। नगर के मध्य भाग में शूल , मुद्र, धनुष आदि शस्त्रों से सज्जित महासेनापति विरूपाक्ष नियुक्त हुआ है। रावण की सेना में दस सहस्र हाथी , दस सहस्र घोड़े और अनगिनत योद्धा हैं । वे सभी अमित पराक्रमी हैं । वे रावण से प्रेम करते हैं । रावण भी उनका विश्वास करता है । इन्हीं योद्धाओं के बल पर रावण ने त्रिलोक जय किया था । मैं आपको भयभीत करने को यह निवेदन नहीं कर रहा हूं । वस्तुस्थिति निवेदन कर रहा हूं। अत : अब आप समुचित व्यूह रच अपने पराक्रम को प्रकट कीजिए। " विभीषण के उपयुक्त वचन सुन राम ने क्षण - भर विचार कर कहा - “ पूर्व द्वार पर सेनापति नील अपने यूथपतियों को लेकर आक्रमण करें , बालिपुत्र युवराज अंगद दक्षिण द्वार पर और मारुति हनुमान् पश्चिम द्वार को आक्रान्त करें । उत्तर द्वार पर मैं लक्ष्मण - सहित लंकापति रावण का अपने बाणों से सत्कार करूंगा। नगर के मध्य भाग पर तेजस्वी सुग्रीव , जाम्बवान् और राक्षसेन्द्र विभीषण आक्रमण करेंगे। कोई भी वानर मानवरूप न धारण करेगा । ‘ वानर रूप ही हमारा आज का गुप्त संकेत शब्द होगा । मैं , लक्ष्मण और अपने चार मन्त्रियों सहित राक्षसेश्वर विभीषण, बस ये सात पुरुष मानववेश में युद्ध करेंगे। " ___ यह व्यवस्था कर राम - लक्ष्मण अपने मंत्रियों तथा सेनापतियों सहित सुबेल पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ गए। वहां पहुंचकर उन्होंने लंका की गतिविधि पर दृष्टि डाली । लंका पर विहंगम - दृष्टि डालकर राम ने कहा - “ यह दुरात्मा रावण अपने अहं के सामने न अपने कुलशील का विचार करता है , न धर्माधर्म ही का । उसने कामवश हो अपनी मर्यादा के विपरीत यह निन्दित कर्म कर डाला है, जिस पर उसे पश्चात्ताप भी नहीं है । परन्तु अधर्म और इन्द्रिय -दासता ही मनुष्य को पतन के मार्ग पर ले जाकर उसकी बुद्धि को कुण्ठित कर देती है । अस्तु , कल सूर्योदय के साथ ही यह सुन्दर - सम्पन्न लंका दुर्दशाक्रान्त हो जाएगी, जिसका सम्पूर्ण दायित्व लंकापति रावण पर ही होगा। " श्री राम इतना कह मौन हो गए । उन्होंने सीता के दु: ख और अवश अवस्था का
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