100. रणभेरी असंभाव्य, अतर्कित, अकल्पित वानर -कटक द्वारा दुर्लंघ्य समुद्र- तरण का समाचार सुन रक्षेन्द्र रावण हतबुद्धि हो गया । उसने अपने शुक , सारण नामक दो मन्त्रियों को बुलाकर आज्ञा दी कि वे शत्रु - सैन्य में जाकर राम का बलाबल देखें । दोनों मंत्री वानर का वेश धारण करके शिविर में प्रविष्ट हुए , परन्तु वे चैतन्य - मूर्ति विभीषण से नहीं छिप सके। उसने उन्हें पहचानकर बन्दी बना लिया और राम के सम्मुख उपस्थित किया । राम के सम्मुख आ उन्होंने जीवन से निराश हो , भयभीत स्वर में कृताञ्जलि होकर कहा - “ महाराज , हम दोनों रक्षेन्द्र महीपति के अनुगत सचिव हैं । रक्षेन्द्र की आज्ञा से आपका बलाबल देखने आए थे । सत्य बात हमने निवेदन कर दी । " राम ने किंचित् हंसकर कहा - " तो यदि तुमने हमारा सम्पूर्ण बल देख लिया है और तुम्हारा अभिप्राय पूरा हो गया है तो तुम जा सकते हो । पर यदि कुछ देखने को रह गया हो तो रक्षेन्द्र विभीषण तुम्हें सब कुछ दिखा देगा । तुम लंका जाकर लंकापति रावण से कह देना कि कल उसकी दुर्ग और तोरणों से सुरक्षित , सुप्रतिष्ठित लंका पर मेरा आक्रमण होगा । तब मैं भी राक्षसों का बल देखंगा और उनका बाणों से सत्कार करूंगा । " इतना कह राम ने दूतों को मुक्त कर दिया । वे राम को प्रणामकर लंका में आए। उन्होंने रावण की सेवा में उपस्थित होकर निवेदन किया - “ देव , वानर - कटक का प्रधान सेनापति महासुभट नील है और उसका सहायक अमितविक्रम बालिपुत्र अंगद है । प्रबल पराक्रमी नल जिसने दुस्तर समुद्र का सेतु -बंध किया है, पचास सहस्र योद्धाओं का अधिपति है । सरोचन पर्वत का स्वामी महाबलि कुमुद, भीमकर्मा चण्ड , साल्वेग का स्वामी शरभ, ये सब चालीस - चालीस सहस्र योद्धाओं के यूथपति हैं । पनस महासेनापति जो देव - दैत्य सभी में अजेय है और वानर- सैन्य के मध्यदेश का रक्षक है, पर्वत के समान विशालकाय है । उसके सहायक सेनानायक गव -गवय अमितविक्रम हैं । फिर महातेजस्वी हर है, जिसमें दस हाथियों का बल है। नील मेघ के समान प्रबल पराक्रमी सेनाधिप धूम्र है, जो अक्षवान् पर्वत का स्वामी है। नर्मदा के तट का स्वामी जाम्बवान् यूथपतियों का प्रधान है, जिसके समान नीतिज्ञ मन्त्री पृथ्वी पर दुर्लभ है। फिर दम्भ और पितामह सन्मादन हैं , जिन्होंने संसार के बड़े- बड़े संग्राम जीते हैं । देवासुर - संग्रामों में भी इन्होंने भाग लिया है । महासेनापति प्रमाथी युद्ध में अजेय है । गवाक्ष, केसरी विन्ध्य देश के अधिपति हैं । सुग्रीव के दस मन्त्री बृहस्पति के समान नीति और धर्म के ज्ञाता हैं । इस वानर - सेना में भूमण्डल के देवों, गन्धर्वो और यक्षों के नरपति सम्मिलित है। योद्धाओं के अग्रगण्य मैन्द और द्विवदि हैं , जिनका साम्मुख्य पृथ्वी का कोई पुरुष नहीं कर सकता। फिर लंका को अग्नि की भेंट करनेवाला हनुमन्त मारुति है । फिर यमपुत्र कुबेर और वारुणेय भी आपसे अपना वैर चुकाने आए हैं । " सुग्रीव को श्री राम ने बालि को मारकर वानरपति बनाया है । पर आपके
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