7. आदित्य प्रचेता के पुत्र दक्ष ने साठ कन्याओं का दान किया । उसने तेरह कश्यप को , दस यम को , सत्ताईस चन्द्र को , चार अरिष्टनेमि को , दो भृगुपुत्र को , दो कृशाश्व को और दो अंगिरा को दीं । आज के विश्व का सम्पूर्ण नृवंश इन्हीं की संतति है । अदिति से कश्यप ने बारह पुत्र उत्पन्न किए । ये बारह आदित्यों के नाम से प्रसिद्ध हुए और इनके कुलों का संयुक्त नाम आदित्य - कुल पड़ा। इनमें जो देव - भूमि में रहे, वे देव कहाए , और जो भारतवर्ष में आए वे आर्य कहाए । वरुण सबसे ज्येष्ठ थे और विवस्वान् सबसे छोटे । विवस्वान् का ही नाम सूर्य था । असुर याजक भृगुवंशी शुक्र - उशना के पुत्र त्वष्टा ने अपनी पुत्री रेणु सूर्य को ब्याह दी । रेणु का ही नाम संज्ञा और अश्विनी भी था । वह जैसी रूपवती स्त्री थी , वैसी रूपगर्विता भी थी । विवस्वान् का रंग श्याम था और वह सुन्दर भी न था । इससे वह मानिनी सदैव ही सूर्य का तिरस्कार करती रहती थी । काल पाकर सूर्य से इस स्त्री के एक पुत्र हुआ जो वैवस्वत मनु के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इसके बाद यम और यमी दो जुड़वां सन्तानें हुईं । अभी ये तीनों बालक ही थे कि किसी बात पर ठिनककर रेणु पति से गुस्सा हो पिता के घर चली गई । तीन बच्चों को अपनी मुंहलगी दासी सवर्णा को सौंप गई । सवर्णा भी बड़ी रूप - लावण्यवती स्त्री थी । वह नव - यौवना भी थी । संज्ञा की मुंहलगी थी । शीघ्र ही यह विवस्वान् की कृपापात्री हो गई और फिर प्रेयसी बन स्वामिनी की ही भांति ठाठ से रहने लगी । समय पाकर विवस्वान् से सवर्णा के गर्भ से एक पुत्र , दो कन्याएं हुईं । पुत्र का नाम शनैश्चर रखा गया , और तपती तथा विष्टि कन्याओं का । वैवस्वत मनु अपनी विमाता के नाम पर सावर्णि मनु भी कहाया । किन्तु सवर्णा एक तो दासी थी , दूसरे विवस्वान् का प्रेम और आदर पाकर उसका मन बढ़ गया था । फिर यह स्वाभाविक था कि वह संज्ञा की सन्तान की अपेक्षा अपनी ही संतति से अधिक ममता रखती थी । यम उग्र स्वभाव का बालक था । उसे विमाता का यह पक्षपात सहन नहीं हुआ और एक दिन बातों ही - बातों में गुस्सा होकर यम ने विमाता सवर्णा को लात मार दी । सवर्णा इस पर आपे से बाहर हो उठी और उसने यम की टांग तोड़ दी । घर की कलह विवस्वान् तक पहुंची। सब बातें सुनकर उसे बड़ा क्रोध आया । उसने सवर्णा को इस बात पर बहुत लानत -मलामत दी कि वह क्यों सब बालकों से समान स्नेह नहीं रखती । अन्तत: विवस्वान् उससे क्रुद्ध होकर रेणु को लाने के लिए उच्चैःश्रवा पर सवार होकर अपने श्वसुर त्वष्टा के घर असुर - भूमि में गया । ससुराल में जाकर उसने अपनी मानवती स्त्री रेणु को अत्यन्त कृश , दीन , जटाधारिणी तथा हाथी के शुण्ड से व्यथित पद्मिनी की भांति मलिन और संतप्त पाया । त्वष्टा ने दामाद का बहुत सत्कार किया , अपनी पुत्री की उपेक्षा करने पर उलाहना भी दिया । रेणु के साथ बहुत मान - मनव्वल हुआ । अन्तत : उस मानवती पत्नी को प्रसन्न कर सूर्य ने उसे शृंगार कराया और स्वयं भी गन्ध ,
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।