रावण को मार सीता का उद्धार करें । फिर प्रसन्न - मन अपने स्वामी सुग्रीव के पास चलें । " ___ युवराज अंगद के वचन सुन वानरों का यूथ जोर -जोर से वज्र - गर्जना करने लगा । चलो , अभी चलो कहने लगा । परन्तु अर्थतत्त्व के ज्ञाता जाम्बवान् ने धीर - गम्भीर स्वर में कहा- “ हे महाबाहु, तेरा यह विचार मुझे उचित नहीं जंचता। हमारे स्वामी सुग्रीव ने हमें केवल सीता की खोज की ही आज्ञा दी है । इसलिए हमें दुस्साहस नहीं करना चाहिए , प्रत्युत अब जल्द हमें सुग्रीव तथा श्री राम की सेवा में उपस्थित होना और जो कुछ हमने किया है , उसका निवेदन करना चाहिए । महत्त्वपूर्ण कार्यों में स्वेच्छाचारिता और उतावली नहीं करनी चाहिए । " ___ महाप्राज्ञ जाम्बवान् के ये वचन सुन सब वानर प्रसन्न हो किष्किन्धा की ओर चलने का संकल्प कर महेन्द्र पर्वत से उतर उत्साह और वेग से अपनी राह लगे ।
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