मतंग ऋषि ने यहां बहुत यज्ञ किए तथा सप्ततीर्थ बनवाए । यहीं पर उन्होंने देवराट् का प्रत्यक्ष सत्कार किया था तथा देवराट् इन्द्र स्वयं यहां आकर ऋषिवर को देवलोक ले गए थे। अब मेरा भी समय आ उपस्थित हुआ है । राम , तुम्हें देखकर और तुम्हारा आतिथ्य करके मैं कृतकृत्य हो गई । अब मेरी इच्छा अग्नि - प्रवेश कर अपना शरीर त्यागने की है । ” इतना कहकर शबरी ने सब तापसजनों को एकत्र कर अग्न्याधान किया और विधिवत् हवन करके सबके देखते-देखते अग्नि -प्रवेश किया । राम - लक्ष्मण ने शबरी की औध्वदैहिक क्रिया सम्पन्न कर , सप्ततीर्थों में स्नान कर पितरों का तर्पण किया और फिर ऋष्यमूक की ओर चले । शीघ्र ही वे पम्पा -सरोवर के तट पर जा पहुंचे। वहां वन की शोभा अकथनीय थी । वृक्ष जैसे फल - फूलों की वर्षा कर रहे थे। वायु के साथ - साथ भ्रमरावलियां गूंज रही थीं । पवन चन्दन के वृक्षों से शीतल और सुरभित था । पक्षी मस्त हो चहक रहे थे। सर्वत्र ऋतुराज का राज्य था । राम वहां के मनोरम वातावरण को देख विरह - दु: ख से दुःखित हो कहने लगे - “ देखो , इस मधुर ऋतु में सीता के बिना मेरी कैसी दशा है ! सीता के बिना यह सुखद वातावरण मुझे कितना कष्टकर प्रतीत हो रहा है! अब न जाने वह साध्वी कहां होगी ? " राम के इस प्रकार विलाप को सुनकर लक्ष्मण ने कहा - “ आर्य, आप धैर्य धारण कीजिए । वह चोर चाहे भूलोक में हो या पाताल में , हम उसे ढूंढ़ निकालेंगे। अब हमें सरोवर में स्नानकर ऋष्यमूक पर पहुंचना चाहिए । किंकर्तव्यविमूढ़ होकर शोकसंतप्त होने से भला क्या लाभ है! ” इस प्रकार पम्पा सरोवर में स्नान कर जब राम ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे, तो दो नवीन शस्त्रधारी पुरुषों को देख सुग्रीव के मन्त्री चौकन्ने हो गए। उन्होंने सुग्रीव को इसकी सूचना दी । हो सकता है, इन पुरुषों को बालि ने ही हमें मारने को भेजा हो , इस विचार से उसने सोच-विचारकर अपने पार्षद हनुमान् को राम के पास सच्चे समाचार जानने के लिए भेजा । हनुमान् ने ऋषिवेश बना राम के पास आ उनका नाम - धाम -गोत्र तथा उनके उधर आने का कारण पूछा । उसने कहा - “ तपस्वी का वेश धारण करने वाले तथा धनुष -बाण लिए वन में विचरण करने वाले , आप कौन हैं ? क्या आप कोई राज्याधिकारी हैं या देव पुरुष हैं ? सो कृपाकर कहिए । इस स्थान पर अपने भाई बालि से प्रताड़ित वानर - राज सुग्रीव रहते हैं । वे हमारे स्वामी हैं । मेरा नाम हनुमान् है । मैं उन्हीं की आज्ञा से आपकी सेवा में आया हूं। " हनुमान् के ऐसे वचन सुन , राम का संकेत पा , लक्ष्मण ने कहा - " हम महात्मा सुग्रीव के गुणों से अवगत हैं और उन्हीं से मिलने के लिए इस स्थान पर आए हैं । सुग्रीव यदि हमसे मित्रता करना चाहें तो हमें भी वह स्वीकार है । हम कोसलेश दशरथ के पुत्र हैं । ये आर्य राम हैं , मैं इनका अनुज लक्ष्मण हूं । पिता की आज्ञा से आर्य राम पत्नी सीता - सहित वन में आए थे, यहां जनस्थान में किसी दष्ट ने इनकी स्त्री का अपहरण किया है । उसी को खोजते हम घूम रहे हैं । हमें राह में राक्षस दनु ने महात्मा सुग्रीव का परिचय दिया था । तभी से हम उनसे मिलने के लिए उत्सुक हैं । " ये बातें सुनकर हनुमान् ने विनम्र वाणी से कहा - “ आपके वचनों से मेरे कान तृप्त हो गए । महात्मा सुग्रीव के अग्रज बालि ने उनकी स्त्री रूपा का अपहरण कर राज्य भी छीन
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