पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३११

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86. अशोक वन लंका में परकोटे के बाहर चार योजन भूमि में अशोक वन था । इस अशोक वन में एक लाख अशोक वृक्ष थे। इस वन में बारहों मास वसन्त रहता था । अशोक के अतिरिक्त अनेक जाति के विविध वृक्ष विविध फल - फूलों से लदे थे। आम और केले की वहां अनगिनत जातियां थीं , जो सभी ऋतुओं में फल देते थे। बीच -बीच में कमनीय लताओं से आच्छादित अनेक कुंज थे। अनेक वृक्ष सुनहले और रुपहले पत्तों वाले थे। उन पर बैठे पक्षी कलरव करते बड़े भले लगते थे। अनेक मोर , कोयल, शुक , सारिका, सारस , हंस , चक्रवाक पक्षियों का समूह ठौर - ठौर पर जलाशयों और सघन कुंजों में विहार करता फिरता था । वायु से झड़ झड़कर अनेक प्रकार से रंग -बिरंगे पुष्पों ने पृथ्वी को ढांप लिया था । उनसे पृथ्वी ऐसी मालूम होती थी , मानो रंगीन गलीचा बिछा हो । वहां स्वच्छ जल से भरे अनेक तड़ाग और पुष्करिणियां थीं , जिनमें बड़े -बड़े शतदल कमल खिले थे। उनके बीच हंस और चक्रवाक निरन्तर क्रीड़ा करते रहते थे । वन में ही एक पर्वत था । उससे एक प्रपात गिरकर मनोहर छटा दिखा रहा था । प्रताप का यह प्रवाह तिरछा -टेढ़ा ऊंची- नीची भूमि पर गिरता बड़ा मनोहर प्रतीत हो रहा था । इस जल - प्रपात के कारण लताएं भूमि पर सो गई थीं , उस पर्वत के पाश्र्व ही में एक बड़ा सरोवर था तथा अनेक कृत्रिम तालाब भी थे, जिनमें बढ़िया श्वेतमर्मर की सीढ़ियां बनी थीं । स्थान- स्थान पर कृत्रिम वाटिकाएं तथा छोटे - बड़े अनेक हर्म्य भी बने थे। सघन वृक्षों के नीचे सोने की वेदियां बनी थीं । बीच-बीच में खुले मैदान भी अनेक थे। सबके बीच एक बहुत प्राचीन सुनहरा अशोक वृक्ष था जो अनेक लताओं से घिरा था , इसके चारों ओर सोने की अनेक वेदियां बनी थीं तथा अद्भुत अग्नि के समान ज्वलन्त पादप चारों ओर थे। इन अलौकिक और दुर्लभ रमणीक वृक्षों को देखकर बड़े-बड़े देव - दैत्य चकित रह जाते थे । ऐसा विराट और मनोरम वन पृथ्वी पर उस समय दूसरा न था । सरोवर के चारों ओर जो चम्पा , चमेली, चन्दन के वृक्षों की सघन छाया थी , उससे वहां की शीतल समीर सदैव ही सुरभित रहती थी । अशोक कानन में एक ऊंची और मनोरम भूमि पर एक सुन्दर विशाल सौध था , जो कैलास पर्वत के समान सफेद था । उसमें सहस्रों मणिजटित खम्भे लगे थे। इसकी सीढ़ियां मूंगों की और वेदियां स्वर्ण की बनी थीं । वह स्वच्छ प्रासाद अपनी आभा से देदीप्यमान था । उसकी अट्टालिकाएं गगनचुम्बी थीं । इसी हर्म्य में अपहृता भगवती सीता को लाकर रावण ने रखा था । हर्म्य पर पांच सौ सशस्त्र राक्षसियों का पहरा था तथा उतनी ही राक्षसियां सीता की शुश्रूषा के लिए नियत थीं । इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण अशोक वन की रखवाली दस सहस्र राक्षस सुभट कर रहे थे। यद्यपि हर्म्य अति विशाल और भव्य तथा सुखोपभोग के सब साधनों से सुसज्जित