भांति माना जाता था और उन्हें कुलपति समझा जाता था । ___ पंचवटी के निकट विनता के पुत्र गरुड़ के भाई - जटायु का छोटा - सा उपनिवेश था । जटायु दशरथ के मित्र थे। जब उन्होंने सुना कि राम दशरथ के पुत्र हैं तो उन्हें राम से बड़ा स्नेह हुआ और उन्होंने उनकी बहुत सेवा - सहायता की । उनका आश्रम अतिशय मनोरम था । वह एक सुन्दर समतल पर सुरुचिपूर्ण ढंग से बसाया गया था । पास ही एक जल - कुण्ड था तथा कुछ ही अन्तर पर पल्लवित और वृक्षों से सुशोभित गोदावरी थी । चारों ओर ऊंचे ऊंचे पर्वत थे, जिनमें अनेक गुफाएं थीं । इन पर्वतों में साल , ताल , तमाल, खजूर, कटहल , आम , अशोक, तिलक, केवड़ा , चम्पा , चन्दन , कदम्ब , लकुच, धव , अश्वकर्ण, खैर, शमी , पलाश और गुलाब के रमणीय वृक्ष -पादप सुशोभित थे। सीता ने अपने श्रम - सीकर से सींचकर इस आश्रम को अत्यन्त मृदु- मनोहर बनाया था । कुंज में हर समय सारस , चकोर , हंस , जलकुक्कुट क्रीड़ा करते थे। वृक्षों पर पक्षी चहचहाते हुए कलरव करते ; मोर कूकते तथा मृग - शावक छलांगें भरते थे । राम- लक्ष्मण ने मिट्टी की दीवार और लकड़ी के खम्भे खड़े करके, ऊपर बड़े- बड़े बांस तिरछे डाल तथा उन पर शमी की शाखाएं फैला तथा मजबूत रस्सियों से बांधकर उनके ऊपर कांस , सरकण्डे और पत्ते बिछाकर उत्तम छायादार घर बनाया था तथा चारों ओर की भूमि को समतल कर वहां विविध प्रकार के फल- फूलों के वृक्ष रोपे थे। राम - लक्ष्मण गोदावरी में स्नान करते , मृगया आखेट करते , बलि - हवि - विधि करते , परस्पर कथा -वार्ता करते , तापसजनों , ऋषियों एवं जनस्थान निवासियों की सब भांति सहायता करते , सबके साथ कौटुम्बिक की भांति रह रहे थे। सभी उन्हें उच्चकुलीन , धीर- वीर, सज्जन, हितैषी मानकर उनका सत्कार करते थे। सीता पत्र - पुष्प , फल - मूल से आगत - समागत सभी जनों का सत्कार और अभ्यर्थना करती - तपस्वियों की स्त्रियों के साथ हिल -मिलकर रहती थी । सीता बड़ी भावुक , कोमल और मृदुल स्वभाव की स्त्री थी । सभी तापसियां उससे प्रसन्न और सन्तुष्ट रहती थीं ।
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