कहा - “ अम्ब , आज क्या बात है, भोर ही में तू बक - झक कर रही है, किसने तुझे क्रुद्ध किया है, बोल ? तेरा मुंह क्यों सूख रहा है ? क्या कोई अमंगल हुआ है ? " कैकेयी की ऐसी मीठी वाणी सुनकर उसने कहा - “ अमंगल और कैसा होता है भला ! आज राम का यौवराज्य- अभिषेक हो रहा है और तू बेखबर सो रही है; तू समझती है, राजा तुझे बहुत प्यार करता है , पर आज तो वह कौशल्या को राज्यलक्ष्मी प्रदान कर रहा है । अब समझी मैं , इसलिए उसने भरत को ननिहाल भेज दिया था । सोच तो , यदि राम राजा बन गया तो तेरा क्या हाल होगा ? हाय , हाय , मैं तो इसी सोच में मरी जाती हूं । पर तू भी तो कुछ अपना बुरा- भला सोच, अपने पुत्र के हित के लिए अब भी सचेत हो समय रहते सचेत हो ! ” धात्री के ये वचन सुनकर कैकेयी ने कहा - “ अम्ब , राम को यौवराज्य मिल रहा है , तो तू दुःख क्यों करती है ? इसमें दुःख और शोक की क्या बात है भला ? मैं तो राम और भरत में भेद नहीं समझती । राम और भरत मेरे दो नेत्र हैं । राम का राज्याभिषेक हो रहा है तो मैं प्रसन्न हूं। यह तो शुभ समाचार है। ले, यह रत्नहार, ये सब आभूषण , मैं तुझे पुरस्कार में देती हूं। ” यह कहकर उसने प्रसन्नता से अपने सब रत्नाभरण उतारकर मन्थरा पर फेंक दिए। परन्तु कैकेयी के इस व्यवहार से मन्थरा और भी जल - भुन गई । उसने वे गहने पटक दिए और तमक - कर बोली - “ अरी मूढ़ तेरी यह कुबुद्धि मुझे तनिक भी नहीं सुहाती । तू दुःख के स्थान पर सुख मना रही है, सौत का पुत्र राजा बने और तेरा पुत्र दास ! इसकी तू खुशी मनाए, ऐसी तेरी बुद्धि है! अरी, यह राम - राज्य की सूचना नहीं है, हम लोगों की मृत्यु की सूचना है। आज राम राजा बनेगा और कौशल्या राजमाता बनेगी। तब तुम दासी की भांति हाथ बांध उसके सम्मुख जाओगी । भरत राम का दास होगा । सीता रानी बनेगी और भरत की स्त्री माण्डवी उसकी दासी । यह सब तू अपनी आंखों से देख सकेगी ? तुझे छोड़ और कौन बुद्धिमती स्त्री ऐसे अवसर पर प्रसन्न हो सकती है ? " वास्तव में कैकेयी राम को पुत्रवत् प्यार करती थी , उसके मन में तुच्छता का भान भी न था । वह अपने शुल्क की बात भी भूल गई थी । राजा का प्यार तथा अयोध्या का वैभव उसे प्रिय था । उसने बूढ़ी धाय मन्थरा से ऐसे वचन सुन नरमी से कहा - “ धातृमातः, तू स्नेह से ऐसा कहती है । परन्तु राम तो यौवराज्य के सर्वथा योग्य है। वह धर्मात्मा है, उदार , सत्यवादी और प्रजापालक है। वह तो मुझे ही अपनी माता समझता है, फिर भला भरत और राम में अन्तर क्या है ? राम को राज्य मिलना भरत ही को राज्य मिलने जैसा है। " रानी के ये वचन सुनकर मन्थरा ने कहा - “ठीक ही है । अभी तू नहीं समझेगी । पर जब राम का पुत्र गद्दी का अधिकारी होगा और भरत और उसके पुत्रों को कोई स्थान न मिलेगा तब सब कुछ तेरी समझ में आ जाएगा । अभी तो तुझे मेरी बातें बुरी लग रही हैं और सौत की उन्नति देखकर तू मुझे पुरस्कार दे रही है , पर तू यह भी तो सोच कि भरत को क्यों मामा के यहां भेज दिया गया । देश - देश के राजाओं को न्योता गया , पर तेरा पिता , भाई और पुत्रों को नहीं बुलाया गया । पर जब अपने और अपने पुत्र के सर्वनाश का यह सब षड्यन्त्र देखकर भी तेरी आंखें नहीं खुलतीं तो मुझे क्या ? जब राम राजा हो जाएगा और तू भरत को ले एक कोने में दासी की भांति पड़ी रहेगी अथवा जब सौत कौशल्या के सम्मुख तुझे हाथ बांधकर खड़ा होना पड़ेगा , तब तुझे पता लगेगा कि मैंने तेरे हित की ही बात कही
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