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76. मन्थरा का कूट तर्क

देखते-ही-देखते यह समाचार अयोध्या में व्याप गया। नगर-जन हर्षोन्मत्त हो गए। अयोध्या में मंगल-वाद्य बजने लगे। राजमार्ग सज गए। नगर-भवनों पर वंदनवार-कलशपताकाएं सुशोभित हो गईं, पुष्प-मालाओं-तोरणों से समस्त गृह सम्पन्न हो गए। मंगलगान, वेणुवाद्य, शंख आदि बजने लगे। राजमार्ग दर्शकों से भर गया। वारांगनाएं नृत्य करने लगीं। विविध होम-पूजा और मंगल-अनुष्ठान होने लगे। सुरभित-सुगन्धित पदार्थों की गन्ध से दिशाएं महक उठीं। हर मुंह में राम के राज्याभिषेक की चर्चा थी। नगर-नागर राम की धीरता-वीरता, धर्म-भीरुता, उत्साह, उदारता, सहृदयता, पितृभक्ति, विद्या-निपुणता आदि की चर्चा करने लगे।

भोर में राज्याभिषेक की तैयारी और उत्सव की शोभा को कैकेयी के सत-खण्डे हर्म्य की छत से दासी मन्थरा ने देखा। उसने देखा—पुरवासी आनन्द-कोलाहल कर रहे हैं। द्वार-द्वार पर ध्वजा-पताकाएं, पुष्प-मालाएं सुशोभित हैं, दर्शकों की भीड़ और चहल-पहल राजद्वार तक बढ़ गई है। राजद्वार पर विविध वाद्य बज रहे हैं। उसने नीचे आ राम की धाय से, जो पीले वस्त्रों से सुशोभित थी, पूछा, "अरी, आज अयोध्या में यह कैसा उत्सव है? बड़ी रानी कौशल्या आज क्यों अन्न, वस्त्र, स्वर्ण, रत्न लुटा रही हैं? राजद्वार पर यह भीड़-भभ्भड़ कैसा है?" तब राम की धाय ने बताया, "अरी मूर्खा, तू इतना भी नहीं जानती? सुना नहीं तूने, आज राम का राज्याभिषेक हो रहा है!"

दासी से यह सूचना पा विकलांगी दासी मन्थरा क्रोध से थर-थर कांपने लगी। वह कैकेयी के पित्रालय की पुरानी दासी थी। कैकेयी को उसने गोद खिलाया था, दूध पिलाया था। शुल्क की बात वह जानती थी। आनव जाति की स्त्री-स्वाधीनता से वह परिचित थी। मानवों की कुल-मर्यादा, पुरुष-प्रधानता, स्त्री-दासत्व, इन सबसे उसे घृणा थी। वह बड़ी बुद्धिमती और तीखे स्वभाव की वृद्धा थी। रानी के मुंहलगी थी। वह दशरथ के विश्वासघात और वचन-भंग को देख अग्नि के समान भभक गई। उसने मन मेंकहा-भरत-शत्रुध्न को ननिहाल भेजकर राजा ने यह अच्छी यक्ति निकाली है। वह अब अपने वचन को परा निबाहना नहीं चाहता। वह तीव्र गति से रानी कैकेयी के शयनागर में पहुंची, रानी कैकेयी अभी सो रही थी। वहां जाकर उसने रानी से कहा—"अरी रानी, क्या आज तेरी निद्रा भंग न होगी? क्या तू नहीं जानती कि तेरा भविष्य आज अन्धकार में डूब रहा है? तेरे ऊपर घोर संकट आनेवाला है। तेरे पाप का उदय हुआ है। उसका फल तुझे शीघ्र ही मिलने वाला है। राजा मीठी-मीठी बातें बना जाता है, तुझे पुष्पहार, आभूषण, रत्न मिल जाते हैं, तो तू समझती है—राजा तेरा ही है। पर मैं कहती हूं, अरी अजान, तेरे साथ छल हो रहा है। कोरी प्रवंचना। धोखा-अरी रानी, तू धोखा खाएगी।"

मन्थरा दासी की ऐसी कटु व्यंग्योक्ति सुनकर रानी कैकेयी हंस दी। उसने हंसकर