पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२६९

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है और धर्मात्मा है। वह पराक्रमी, साहसी, बलवान्, तेजस्वी और प्रभावशाली है। अब यदि आप ठीक समझें तो मैं कल प्रातःकाल पुष्य नक्षत्र के शुभ योग में आपकी साक्षी में राम को यौवराज्य दूं! आप मेरे इस प्रस्ताव पर भली - भांति विचार कर लें तथा अपने स्वतन्त्र विचार प्रकट करें । ” पाठक देख सकते हैं कि दशरथ ने अपना प्रस्ताव कैसे युक्ति और गम्भीरता से उपस्थित किया था । राम के श्रेष्ठ गुणों का बखान करने के साथ ही उनके ज्येष्ठ होने की ओर भी संकेत किया था । फिर इस सम्बन्ध में वशिष्ठ, वामदेव और विश्वामित्र जैसों की स्वीकृति तथा संकेत था । उस कारण सभी राजाओं ने राम - राज्याभिषेक का सोल्लास समर्थन किया । निस्सन्देह राम के विरोध का कोई कारण भी न था । दशरथ की प्रतिज्ञा तो सब पर विदित न थी । परन्तु राजनीति -विचक्षण दशरथ ने सबका समर्थन पाकर फिर पूछा - “ आप लोग केवल मेरी प्रसन्नता के निमित्त ही यह प्रस्ताव स्वीकार करते हैं , या कि आपने भी राम के उदार गुणों पर विचार किया है ? ” तब राजाओं के प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से कहा - “ राम वास्तव में सत्यवादी , एक सफल व्यक्ति के सब गुणों से परिपूर्ण , धर्मात्मा , धीर , वीर, पराक्रमी , तेजस्वी , साहसी , शक्तिमान्, उत्साही , उदार , मृदुभाषी , बुद्धिमान्, सच्चरित्र , प्रजापालक और जनरक्षक हैं व सर्वगुणसम्पन्न हैं । वे संसार के सभी जीवों को प्रिय हैं । शत्रु का मानमर्दन करने तथा उसे विजय करने का उनमें अदम्य सामर्थ्य है । वे अद्भुत पराक्रमी हैं । उनके समान देव , नाग , गन्धर्व, किन्नर , दैत्य , दानव , आर्य आदि वंशों में कोई नहीं है । हम सभी हृदय से यही चाहते हैं कि राम का शीघ्रातिशीघ्र यौवराज अभिषेक कर दिया जाए। हमारे कल्याण के निमित्त आप राम को यौवराज्य पद शीघ्र दे दें । ” राजपुरुषों के ये वचन सुनकर दशरथ ने कहा - “ आप धन्य हैं ! आपके विचार स्तुत्य हैं । मैं आपसे सहमत हूं । आजकल चैत्र मास है, वसन्त का आगमन हो चुका है । चारों ओर वन - उपवन -वाटिका पूर्ण पल्लवित और पुष्पित हैं । वृक्ष - पादप - लताएं सभी हरी - भरी , फल फूलों से लदी हुई हैं । खेत हरे - भरे और धान्यों से परिपूर्ण हैं । कल पुष्य नक्षत्र है । आपकी अनुमति से ही राज्याभिषेक की सामग्री प्रस्तुत की जाए। " इसका सभी ने अनुमोदन किया । तब दशरथ ने अपने गुरु और मन्त्री वशिष्ठ से करबद्ध होकर कहा - “ अब आप सब सामग्री प्रस्तुत कर यह अनुष्ठान कल ही पूरा कर दीजिए। " इसके बाद दशरथ ने सब मंत्रियों को , नगर -निवासियों तथा समागतजनों का भव्य स्वागत और आतिथ्य करने का आदेश दिया । सुमन्त्र दशरथ के मित्र, मन्त्री और राज्य के परम हितैषी थे। अब तक सभी राजकुमारों की देख -रेख, शिक्षा-दीक्षा उन्हीं के अधीन थी । अब सुमन्त्र के द्वारा राम को बुलाकर महाराज दशरथ ने कहा - “ रामचन्द्र , तुम मेरे तथा अपनी माता के प्रिय हो , समस्त प्रजा के प्राणाधार हो । कल पुष्य नक्षत्र में मैं तुम्हें यौवराज्य -विभूषित करना चाहता हूं। सभी राजा- राजवर्गी इसमें सहमत हैं । मैं तुम्हें तुम्हारे हित की सीख देता हूं । तुम सदैव जितेन्द्रिय रहना, बुरे व्यसनों से दूर रहना , समुचित रीति से प्रजा का न्याय करना , सेना को सन्तुष्ट रखना , कोष में सदैव स्वर्ण-रत्न भरपूर रखना , अपने कर्मचारियों , भृत्यों, दासों , सेवकों और दासियों को सुखी रखना। ” इतना कहकर राजा प्रेमाश्रु बहाने लगे। फिर पुत्र को छाती से लगाकर बोले - “ पुत्र ,