साँचा:गलतनरपति होगा । मैं तेरे अंग में ऐसे लक्षण देख रहा हूँ और मेरे ये पुत्र तेरे मामा प्रहस्त , अकम्पन , विकट , कलिकामुख, धूम्राक्ष , दण्ड , सुपाश्र्व , महाबल , संहादि, प्रहस्त और भासकर्ण तेरे अधीन मन्त्री होंगे। ” रावण महत्त्वाकांक्षी , साहसी और मेधावी था । इस प्रकार नाना और मामाओं से बारम्बार उकसाये जाने से उसके मन में महाराज्य संगठन की आकांक्षा उत्पन्न हो गई । उसमें तीन रक्तों का मिश्रण था । प्रजापति के वंश का सर्वोत्तम आर्य रक्त , बहिष्कृत व्रात्य रक्त और दैत्य रक्त । वह अपने भाइयों , मित्रों और तरुणों को लेकर आंध्रालय से निकला । उसका प्रधान सलाहकार उसका नाना सुमाली उसके साथ था । सुमाली के दो पुत्र प्रहस्त और अकम्पन तथा माल्यवान् के पुत्र विरूपाक्ष तथा मारीचि सहोदर मन्त्रियों की भाँति उसके साथ थे। वह एक - एक करके सब द्वीपसमूहों को जय करता हुआ इस समय यवद्वीप में आ पहुँचा था । यहाँ तत्कालीन वातावरण और प्राचीन इतिहास पर थोड़ा प्रकाश डालना आवश्यक है । उस विस्तृत प्रागैतिहासिक युग का यक्तीञ्चित् दिग्दर्शन कराने के बाद हम अपने उपन्यास को आगे चलाएँगे ।
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