कहा - “ सूर्पनखा, तू विषाद न कर, मैं अभी जनस्थान जाता हूं। उस पुरुष का हृत्खण्ड तुझे खाने को और गर्म रक्त पीने को दूंगा , चिन्ता न कर! " इस पर अकम्पन ने बद्धांजलि होकर कहा "रक्षेन्द्र प्रसन्न हों । आज्ञा पाऊं तो निवेदन करूं । उस बहिष्कृत राजकुमार के साथ जो स्त्री है, वह विश्व की अनिन्द्य सुन्दरी है । अभी उसने यौवन की देहरी में पैर ही रखा है । उसके सब अंग - प्रत्यंग सुघड़ और सलोने हैं । वह संसार की सब स्त्रियों में अमूल्य रत्न है । हे महाराज , उस शीलवती की सुषमा का मैं कहां तक बखान करूं ? सो मुझ दास का तो निवेदन है कि आप छल - बल से उस रमणीय रमणी को हरण कर लाइए । इससे बहन सूर्पनखा का बदला भी चुक जाएगा और वह हतभाग्य तपस्वी मानव - कुमार उसके वियोग में रो - रोकर आप ही मर - खप जाएगा। " । ___ मन्त्री अकम्पन की यह युक्ति रावण को जंच गई। धनुर्यज्ञ में रावण ने सीता की जो लज्जाविनम्र कमनीय कान्ति देखी थी , वह उसके मन में बसी ही थी । उसने संतुष्ट होकर कहा - “ ऐसा ही होगा। मेरा रथ तैयार करो । प्रभात होते ही मैं जनस्थान को जाऊंगा। "
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