"मेरी यह बात सुनकर खर ने अपने महाबली चौदह भटों को आदेश दिया कि जाओ, देखो, इस दण्डक वन में कृष्ण मृग - चर्म धारण किए शस्त्र - सज्जित दो पुरुष आए हैं , उनके साथ एक स्त्री भी है । तुम जाकर उन दोनों पुरुषों को मार डालो और उनका हृदय निकाल लाओ। हमारी बहन सूर्पनखा उसका भक्षण करेगी । उस स्त्री को जीता पकड़ लो , हम उसे रक्षराज को भेंट करेंगे। “ सो भाई, चौदह राक्षस- भट शस्त्रसज्जित हो जब पंचवटी पहुंचे, तो शूल , कृपाण, शक्ति लेकर राम पर टूट पड़े, परन्तु उस मायावी पुरुष ने बात की बात में उन भटों को मार गिराया । यह सुनकर खर क्रुद्ध हो चौदह सहस्र राक्षसों की सम्पूर्ण सेना लेकर चला और स्त्री - सहित उन तीनों को घेर लिया। पर भाई , वे तो इस भयानक सैन्य से भी विचलित नहीं हुए । हे भाई, जब महावीर , खर अपने धनुष और बाणों का भार अपने देदीप्यमान रथ पर रख , उत्तम गधों को उसमें जोत , राक्षसवाहिनी को लेकर चला, तो दिशाओं में अंधकार छा गया । राक्षसों की गर्जना से वन -पर्वत कम्पायमान हो गए , धूल के बादलों ने सूर्य को छिपा लिया । परन्तु उस समय बड़े- बड़े अपशकुन हुए । राक्षसों पर अमंगलसूचक रक्त -मिश्रित जल की वर्षा हुई । खर के रथ में जुते गधे दौड़ते - दौड़ते अकस्मात् गिर पड़े । रथ की स्वर्ण- ध्वजा पर एक गिद्ध आ बैठा । सेना के सामने मांसाहारी पशु , पक्षी अनेकविध डरावने शब्द करने लगे । प्राची दिशा में शृगाल रोने लगे , सूर्य- मण्डल के चारों ओर गोलाकार घेरा दिखाई पड़ने लगा। ऐसा प्रतीत होता था , मानो बिना अमावस्या के आज सूर्य को केतु ने ग्रस लिया है। परन्तु इन उत्पातों को देखकर भी खर डरा नहीं। उसने कहा - चाहे जो हो , मैं अपनी प्रिय बहन सूर्पनखा को इन शत्रुओं का हृत्पिण्ड अवश्य खाने को दूंगा । इस प्रकार खर - दूषण सहित चौदह सहस्र राक्षसों ने राम का आश्रम घेर लिया । जब उन तपस्वियों ने राक्षसों के इस दल -बादल को आते देखा, तो उन्होंने रक्षा और युद्ध की तत्काल व्यवस्था कर ली । छोटा तपस्वी तो उस स्त्री को गिरि - गुहा में बैठाकर , गुहा- द्वार पर धनुष - संधान करके बैठ गया और बड़ा राक्षसों के सम्मुख आ धनुष टंकारने लगा । खर ने जब यह देखा तो उसने सारथि से कहा - हमारा रथ इस हतायु पुरुष के सम्मुख ले चल । जब उस पुरुष ने खर के रथ को अपनी ओर आते देखा , तो पैने बाण छोड़कर रथ के गधों को तुरन्त मार गिराया । अब तो खर दूसरे रथ पर चढ़कर बाणवर्षा करने लगा । राक्षसों की सैन्य ने भी उसे चारों ओर से घेरकर बाणों से पाट दिया , परन्तु वह तो अद्भुत कौशल और फुर्ती से चारों ओर घूम घूमकर दिव्यास्त्रों से राक्षसों का हनन करने लगा। सेना के साथ मैंने स्वयं रहकर उसका यह चमत्कार देखा । अब मैं तुमसे क्या कहूं - भाई, राक्षसों के छोड़े हुए शस्त्र उस पुरुष में इस प्रकार लय हो जाते थे, जिस प्रकार नदियां समुद्र में लय हो जाती हैं । उसके शरीर से रक्त की धारा बह रही थी , परन्तु उसने कालपाश की भांति जिन बाणों की वर्षा की , वे सब अग्नि के समान ज्वलन्त थे। उनसे बिंध-बिंधकर राक्षस रक्त में लथ- पथ हो भूमि पर लोटते चले गए । इस प्रकार दो प्रहर के युद्ध में उस एकाकी पुरुष ने सब राक्षसों को काट डाला । बहुत - से राक्षस चिल्लाते हुए भाग खड़े हुए । बहुत - से पाश, पत्थर , गोफ , मुदूर ले उस पर पिल पड़े । पर जब उस पुरुष ने तेजस्वी गन्धर्व- अस्त्र का प्रयोग किया , तो चारों ओर आग ही आग फैल गई । उस समय युद्ध - क्षेत्र में चारों ओर लोथें ही लोथें दीख रही थीं । खर का रथ भंग हो गया , ध्वजा टूट गई , गधे मर गए। तब खर - दूषण बचे हुए राक्षस - भटों को
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