पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२४३

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जिस समय उरपुर में इस प्रकार रावण के नित - नये ब्याह रचाए जा रहे थे और एक से बढ़कर एक नवोढ़ा बालाएं उसे भेंट दी जा रही थीं , तभी सम्पूर्ण दैत्यलोक , देवलोक तथा मृत्युलोक के उन राजाओं और सरदारों ने, जिनकी कन्याओं का रावण ने हरण किया था , उरपुर के समाचार जान तथा रावण का परिचय पा सन्देश पर सन्देश भेजने आरम्भ कर दिए। गन्धर्व नागभट ने अपनी कन्या मदनसेना , अपरान्त के स्वामी सुभट ने अपनी कन्या चन्द्रावती , कांची के मरुत् राजा कुम्भीरक ने अपनी कन्या वरुणसेना, लावाणक के राजा ने अपनी लावण्यवती कन्या विद्युन्माला और श्रीकण्ठ के राजा ने अपनी कान्तिमती कन्या के लिए भारी- भारी दहेज भेज रावण को अपना दामाद स्वीकार कर लिया । पृथ्वीजयी रक्षेन्द्र रावण को अपनी - अपनी कन्या देने की मानो समूचे दैत्यलोक और देवलोक में होड़ - सी मच गई । ____ उस काल में कन्याओं का राजनीतिक मूल्य भी खूब था । आजकल की भांति कदाचित् उन दिनों विदेशों के राज - दरबारों में राजदूत नहीं रखे जाते थे। तब विजयी नरपति को कन्या देना ही लाभदायक होता था । वह कन्या पिता के शत्रु -हर्म्य में जाकर उसके हृदय तक का भेद जान लेती थी तथा सदैव अपने पिता पर पति को सदय रखती थी । वह युग ऐसा ही था । - उरपुर के क्रीड़ा - उद्यानों में नित - नई नववधुओं का प्रसाद पा रावण निर्द्वन्द्व कुछ दिन अपनी मधु - यामिनियां मनाता रहा । जब वह वहां से चला तो मय दानव ने अपने दामाद को एक सहस्र कुमारिकाएं , एक सहस्र हाथी , दस सहस्र अश्व , एक सहस्र स्वर्णजटित रथ तथा स्वर्ण, रत्न , वस्त्र , कर्पूर , अगर , कुंकुम आदि से भरे पांच हजार ऊंट दहेज में दिए तथा सब राक्षसों का विधिवत् सत्कार कर बहतु - सा स्वर्ण- रत्न दे उन्हें विदा किया ।