शीघ्र ही स्वयं वह अपवर्त में जा पहुंचा । यमराज महिषों की सैन्य ले तोमर, शूल , प्रास, परिघ, मुद्गर और शक्ति के साथ युद्धस्थल में आ पहुंचे। वह यद्यपि बहुत वृद्ध हो गए थे पर अभी उनमें बड़ा बल था । यमराज ने राक्षस मन्त्रियों तथा राक्षसों को छोड़ सीधा रावण ही पर आक्रमण किया । यम के दिव्यास्त्रों से रावण व्याकुल हो गया , तब उसने महा अमोघ पाशुपतास्त्र धनुष पर चढ़ाया । पाशुपतास्त्र सहस्र उल्कापात की भांति - ज्वलंत सत्त्व की भांति सब यमदूतों को भस्म कर यम को पराभूत कर गया । ___ परन्तु शीघ्र ही चैतन्य हो क्रोध से लाल- लाल आंखें लिए यम ने अपने सारथि से कहा - “ सूत , मेरा रथ इस वैश्रवण के पास ले चल । " सूत ने काल - दण्ड हाथ में ले , रथ आगे बढ़ा दिया । यम ने भयानक वेग से महास्त्रों का प्रयोग किया , जिसमें दशों दिशाएं जलने लगीं । राक्षसों की सेना हाहाकार करती भाग खड़ी हुई । पर रावण ने घोर गर्जना करके यमराज को बाणों से छा दिया । यमराज ने भी गदा के प्रहार से रावण के वक्ष को आहत कर दिया । फिर उस पर अमोघ शक्ति का प्रहार किया । इससे रावण मूर्छित होकर भूमि पर आ गिरा । थोड़ी ही देर में फिर चैतन्य होकर उसने बाणों की वर्षा कर यम के सारथि मृत्यु को व्याकुल कर दिया । यमराज ने कहा - “ अरे , यह विश्रवा मुनि का पुत्र तो हिरण्यकशिपु , नमुचि , शम्बर , धूमकेतु, बलि , वैरोचन , वृत्र , राजर्षि, गन्धर्व, उरग सभी से प्रबल ज्वलन्त सत्त्व प्रतीत होता है। ” यह कहकर यमराज ने युद्ध- क्षेत्र त्याग दिया । यमराज को पराङ्मुख देख रावण विजय का डंका बजाता हुआ अपवर्त से वरुणलोक की ओर चल पड़ा । शीघ्र ही उसकी चतुरंग चमू वरुणलोक में जा पहुंची तथा वारुणेयों से उसका घमासान युद्ध ठन गया । नानाविध दिव्यास्त्रों से वारुणेयों ने राक्षसों से युद्ध किया । वारुणेयों ने बाणों से रावण के शरीर को छेद डाला । इस पर क्रुद्ध हो महोदर ने रथ पर बैठ मुशल, भाल , पट्टिश , शक्ति और शतनी लेकर वारुणेयों को खदेड़ दिया । उसके प्रहार से वारुणेय चारों ओर से घिर गए। यह देख रावण ने परशु हवा में घुमाकर प्रलयमेघ के समान गर्जना की और सब वारुणेयों से कहा - “ हे वारुणेय, तुमने मय दानव की पत्नी हेमा नामक अप्सरा का हरण किया है, उसे वापस करो तथा उरनगर मय दानव को दो , तो मैं तुम्हें क्षमा करूंगा। नहीं तो समूचे वरुणालय को भस्म कर ढेर कर दूंगा । " इस पर इन्द्रद्युम्न वारुणेय ने आगे बढ़कर खड्ग हवा में हिलाते हुए कहा, " हेमा मेरी प्रेयसी है, उस पर जिसकी दृष्टि है, उसका मैं इसी क्षण वध करूंगा। ” मय दानव अब अपनी विकराल शक्ति ले आगे आया। उसने कहा - “ अरे पराई स्त्री को चुराने वाले चोर, ठहर! आज तू मेरे हाथ से बच नहीं सकता । ” इसके बाद दोनों वीर गुंथ गए। विविध शस्त्रास्त्रों का प्रयोग हुआ और इन्द्रद्युम्न छाती में शक्ति खा रक्त वमन करता हुआ मर गया । वारुणेयों ने अछता -पछताकर हेमा रावण को सौंप दी । उरनगर भी उसके हवाले किया । इस प्रकार वारुणेयों से युद्ध में कृतकृत्य हो , अपनी प्रिय मन्दोदरी की अभिलाषा पूर्ण कर , अपनी सास हेमा अप्सरा को साथ ले रावण ने दलबल सहित उरनगर में डेरा डाला और सब राक्षस - सैन्य को विश्राम करने की आज्ञा दी ।
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