महाराज अनरण्य का निधन होने पर रावण ने हिमवन्त की ओर बाग मोड़ी, जहां उसके भाई कुम्भकर्ण, नाना सुमाली तथा महावीर पुत्र मेघनाद तथा सहस्रों राक्षस उसकी बाट जोह रहे थे। रावण की वह वीर - वाहिनी उनसे इस प्रकार जा मिली, जैसे नदियां समुद्र में मिलती हैं । राक्षसों की एक सैन्य का आगमन सुनकर यक्ष भयभीत होकर भागने लगे। कुबेर ने जब सुना तो उसने क्रुद्ध होकर रावण के सम्मुख युद्ध करने अपनी चतुरंग चमू को भेजा। यक्षों ने राक्षसों के धुर्रे उड़ा दिए। राक्षस और राक्षस - सेनापति इधर - उधर भागने लगे । यह देखो रावण ने ललकारकर कहा - “ अरे राक्षस भटो ,निर्भय युद्ध करो और देखो कि मैं अकेला ही युद्धस्थली में कैसा चमत्कार दिखाता हूं। ” इतना कहकर वह अपना परशु घुमाता हुआ यक्षों के समूह में घुस गया । यक्षों ने भी गदा , मुशल, खड्ग , शक्ति , तोमर आदि आयुध ले उसे चारों से घेर लिया । परन्तु रावण ने उनका तनिक भी भय न कर अपने फरसे से उन्हें मारना शुरू कर दिया । उसके मन्त्रियों और सेनापतियों ने भी उसे चारों ओर से घेरकर चौमुखी मार शुरू कर दी । देखते - ही - देखते यक्षों के शरीर कट - कटकर ढेर होने लगे । घायलों की चीत्कार और योद्धाओं की ललकार से लोगों के कानों के परदे फटने लगे । यक्षों की यह दुर्दशा देख कुबेर वैश्रवण ने अपने सेनापति सुयोध कंटक यक्ष को बहुत - सी नई सेना देकर भेजा। इस नई सेना को देख विकराल कुम्भकर्ण दोनों बाहु फैलाकर दौड़ा । दूसरी ओर से मारीच ने यक्षों को दबाया । दोनों दलों में जब इस प्रकार विकट संग्राम हो रहा था , तब अवसर पा रावण अपना परशु घुमाता हुआ अलका के सिंहद्वार पर जा पहुंचा। उसके साथ ही दैत्य सुमाली शक्ति हाथ में लिए चला । द्वार -रक्षकों के अध्यक्ष सूर्यभानु यक्ष ने रावण को रोकना चाहा। जब रावण उसे धकेल आगे बढ़ा , तो सूर्यभानु ने खींचकर परिघ रावण के मस्तक पर दे मारा, जिससे रावण के मस्तक से रक्त की धार बह चली । इससे क्रुद्ध होकर रावण ने वही परिघ छीन इतने वेग से उसकी छाती में मारा कि वह वहीं गिरकर मर गया । द्वार -रक्षक सारी सेना अस्त्र - शस्त्र फेंक भाग खड़ी हुई । रावण परशु घुमाता हुआ सुमाली -सहित अलकापुरी में घुस गया । कुबेर ने जब यह समाचार सुना तो उसने मणिभद्र यक्ष को रावण का वध करने भेजा । चार हजार यक्ष लेकर मणिभद्र ने रावण को चारों ओर से घेर लिया । उस पर गदा , मुशल, प्रास , शक्ति , तोमर तथा मुद्र की वर्षा होने लगी । इसी समय प्रहस्त , अकम्पन और मारीच बहुत - सी राक्षस सेना ले वहां पहुंच गए । अब वीर वीर से गुंथ गए । प्रहस्त और महोदर ने बहुत - से यक्षों को मार गिराया । इसी समय धूम्राक्ष ने मणिभद्र की छाती में कुशल का प्रहार किया , पर मणिभद्र ने उसकी तनिक भी चिन्ता न कर इतने वेग से गदा धूम्राक्ष को मारी कि वह चक्कर खाकर भूमि पर गिर गया । यह देख रावण मणिभद्र की ओर दौड़ा । मणिभद्र ने तीन शक्तियां रावण पर फेंकी, पर रावण ने इसी समय परशु से मणिभद्र के सिर पर प्रहार किया । इससे मणिभद्र मूर्छित हो गया । उसे रथ पर डालकर यक्ष कैलास की ओर ले भागे । मणिभद्र के पराभव का समाचार सुनते ही यक्षों की सेना में हाहाकार मच गया । अलकापुरी के सब आबालवृद्ध आर्तनाद करने लगे। यह देख शुक्र , प्रोष्ठ- पद और पद्मशंख नामक तीन महाविक्रमी महारथियों के साथ स्वयं कुबेर धनेश ने पुष्पक विमान में बैठकर यक्षों की सेना- सहित युद्ध - भूमि में प्रवेश किया । कुबेर धनेश को सम्मुख आता देख रावण
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