65 . आर्यावर्त में प्रवेश क्षिप्र गति से रावण की राक्षस सैन्य ने आर्यावर्त में प्रवेश किया और वह नैमिषारण्य में जा पहुंची। पाठक जानते हैं कि नैमिषारण्य में रावण का एक सैनिक सन्निवेश स्थापित था जिसकी रक्षार्थ ताड़का राक्षसी तथा उसके दो पुत्र सुबाहु और मारीच बहुत - सी राक्षस - सैन्य सहित वहां रहते थे। उसे आशा थी कि नैमिषारण्य में उसका ताड़का और उसके पुत्रों द्वारा अच्छा सत्कार होगा। परन्तु यहां आने पर जब उसने अपने सन्निवेश को उजड़ा हुआ और नष्ट - भ्रष्ट देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया । उसने मन्त्रियों से कहा - “यह तो बड़ी अद्भुत बात है , भला मेरे सेनापति मारीच, सुबाहु और सब राक्षस सेना कहां गई ? ताड़का तो बड़ी विकट स्त्री थी , किसने उसका पराभव किया ? " मन्त्रियों ने दूतों के द्वारा बड़ी खोज के बाद मारीच को किसी गिरि - कन्दरा से खोज निकाला , जहां वह प्राण - भय से छिपा बैठा था । वह बहुत दुर्बल , बूढ़ा- सा हो रहा था तथा घावों से उसका शरीर भरा था । वह बहुत दुःखी और निराश था । रावण ने उसे बहुत - बहुत तसल्ली दी और उससे इस दुर्दशा का कारण पूछा । मारीच ने कहा - “ हे स्वामी , अपनी विपत्ति कैसे कहूं। बस, संक्षेप में यही सुन लीजिए कि राक्षसों में केवल मैं ही अकेला जीवित बचा हूं । अन्य सब तो काल - कवलित हुए। " “किन्तु यह विपत्ति राक्षसों पर आई कैसे ? " "कोई राम -लक्ष्मण नामक दो मानव -कुमार हैं। उन्हीं ने हम सब राक्षसों को मार गिराया । " " कौन हैं वे मानव - कुमार ? " " सुना है, कोसलराज्य के राजकुमार हैं । " “ यहां नैमिषारण्य में क्या उनकी भूमि है ? " " नहीं , विश्वामित्र उन्हें अपनी सहायता के लिए ले आए थे। " " वही ऋचीक के पुत्र ? " । “ पुत्र नहीं , साले – पर वेद उन्होंने ऋचीक ही से पढ़ा है। " “मैंने सुना है । पर वे तो मानवों के मित्र नहीं । मानवों के मित्र तो मुनि वशिष्ठ हैं । " “ वशिष्ठ और विश्वामित्र बहुत लड़े हैं । जीवन में प्रतिस्पर्धी रहे हैं । पर इस बार वे वशिष्ठ की सहमति ही से इन मानव - कुमारों को ले आए थे। " “किसके पुत्र हैं वे ? ” “ अयोध्यापति दशरथ के । " " ओह, शम्बर के युद्ध में दशरथ के पराक्रम की बात मैंने सुनी थी । परन्तु वे बालक मानव क्या बहुत सेना अयोध्या से लाए थे? " “ नहीं एकाकी ही थे। विश्वामित्र उनके साथ थे। "
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