साँचा:सहीसेनानायक भाग चले । यह देख रावण स्वयं ललकारकर अपना परशु घुमाता हुआ आगे बढ़ा । इन दोनों वीरों का डेढ़ प्रहर विकट युद्ध हुआ , जिसे देखने को दोनों ओर की सेनाएं हाथ रोक खड़ी हो गईं । दोनों एक - दूसरे को पराजित करने की इच्छा से एक - दूसरे पर चोट कर रहे थे । रावण के हाथ में विकराल परशु था और चक्रवर्ती के हाथ में विकट गदा थी । चक्रवर्ती ने उछल - उछलकर रावण के वक्ष में गदा की चोट की । उधर रावण अपने परशु के करारे वार करता रहा । बहुधा दोनों वीरों के शस्त्र परस्पर टकरा जाते , उनमें वज्र -गर्जन होता , अग्नि - स्फुलिंग निकलते । इसी प्रकार युद्ध करते - करते डेढ़ प्रहर काल बीत गया । दोनों वीर लहू और पसीने से तर हो गए । अब अकस्मात् चक्रवर्ती ने अपनी गदा घुमाकर दूर से रावण के वक्ष पर फेंक मारी । रावण ने भी परशु पर उसे झेल लिया । दोनों वीरों के अस्त्र टूटकर टुकड़े- टुकड़े हो गए। फिर भी रावण उस प्रहार से तिलमिलाकर एक धनुष पीछे हट गया । वह दर्द से कराह उठा । पर तुरन्त ही उछलकर उसने चक्रवर्ती के वक्ष में मुष्टि -प्रहार किया । उस वज्र - मुष्टि का प्रहार खाकर चक्रवर्ती मुंह से खून वमन करने लगा । फिर क्रोध से अधीर होकर उसने रावण की कमर पकड़ उसे अधर हवा में उठाकर भूमि पर पछाड़ दिया । रावण मूर्छित हो गया । चक्रवर्ती ने उसे कांख में दाब अपना मुंह मोड़ा । यह देख राक्षस - दल में हाहाकार मच गया । सब राक्षस गुल्मपति , नायक , सेनापति, सुभट अपने - अपने अस्त्र ले ‘मारो -मारो कहते चक्रवर्ती के पीछे दौड़े । परन्तु इसी समय रुद्र , शर्यात और अवन्तिराज की विकट चतुरंग चमू ने शक्ति , शूल, खड्ग, धनुष ले चारों ओर से राक्षसों को घेरकर मार करनी शुरू कर दी । राक्षस भाग खड़े हुए और चक्रवर्ती ने रावण को रस्सी से बांध अपने रथ पर डाल लिया तथा विजय - दुन्दुभि बजाता हुआ माहिष्मती में घुसा, जहां पौर वधुओं ने उस पर लाजा -वर्षा की तथा ऋषिजनों ने पुष्प बरसाए। चक्रवर्ती ने रावण को बांधकर कारागार में डाल दिया ।
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