61 . हैहय कार्तवीर्य सहस्रार्जुन नहुष -पौत्र और ययाति- पुत्र यदु के दूसरे पुत्र सहस्रजित् की शाखा में पच्चीसवीं पीढ़ी में हैहय नाम का राजा हुआ । इसके वंश में तैंतीसवां राजा कृतवीर्य और चौंतीसवां राजा अर्जुन था , जिसे उसके बल - प्रताप के कारण सहस्रार्जुन के नाम से पुकारा गया । हैहयों का यह वंश बड़ा विक्रमशाली हुआ । वैवस्वत मनु के पुत्र शर्याति ने खम्भात की खाड़ी में एक आनर्त राज्य स्थापित किया था । शाति बड़े सम्राट थे । इनका ऐन्द्राभिषेक हआ था । पाठक यह भी जानते हैं कि इनकी पुत्री सुकन्या का विवाह भृगु -पुत्र एवं शुक्र के सौतेले भाई च्यवन से हुआ था । यद्यपि च्यवन दैत्य -याजकों के वंश में थे, परन्तु मानवों की कन्या से विवाह करके आर्य ऋषि हो गए थे, किन्तु रहते थे ससुराल में , राजसी ठाट - बाट से । वे योद्धा भी बड़े बांके थे। एक बार तो उन्होंने देवराट् इन्द्र से विकट युद्ध किया था । वह काल ही ऐसा था जब प्रत्येक को शस्त्र ग्रहण करना पड़ता था । ऋषि लोग भी तब सीधे- सादे तो नहीं होते थे। वे युद्ध में राजाओं के साथ- साथ भाग लेते थे । कालान्तर में पुण्यजन असुरों ने शार्यातों से अनार्त का राज्य छीन लिया और उनसे हैहयों ने वह राज्य छीन लिया । आनर्त - राज्य के स्वामी होकर हैहयों ने च्यवन के वंशज भार्गवों को अपना कुलगुरु मान लिया । च्यवन के वंशधरों में दधीचि , ऊर्व, ऋचीक , जमदग्नि और परशुराम उत्पन्न हुए । अतः हैहयवंश का भार्गवों के इस वंश से न केवल घनिष्ठ सम्बन्ध ही रहा , अपितु वे हैहयों के ही राज्य में बसे रहे । परन्तु राजपुरोहित और राजसम्बन्धी होने के कारण भार्गव खूब सम्पन्न जागीरदार की भांति रहते थे। हैहयों ने भी उन्हें खूब धन दिया था । पीछे हैहयों ने उनसे प्रजा की भांति कर ग्रहण करना चाहा । इस पर भार्गवों ने आपत्ति की । राज्य के दायाद और गुरु होने के नाते वे इस कर से अपने को बरी करना चाहते थे। परन्तु इस पर झगड़ा बढ़कर भारी विद्रोह का रूप धारण कर गया । अन्त में भार्गवों को माहिष्मती का राज्य छोड़कर सरस्वती -तीर पर बस जाना पड़ा जहां उनका सम्बन्ध कान्यकुब्जपति गाधि से हो गया और वे इससे फिर प्रतिष्ठित और सम्पन्न हो गए । और्व- पुत्र ऋचीक का पुत्र जमदग्नि और गाधि - पुत्र विश्वामित्र -मामा - भान्जे सरस्वती - तट पर ऋचीक ऋषि के आश्रम में वेद पढ़ने लगे और शीघ्र ही दोनों विख्यात वेदर्षि हो गए। यह बात पाठक जानते ही हैं । इस समय हैहयों का प्रताप मथुरा से नर्मदा - तट तक के प्रदेशों में फैल गया था और उधर काशी से खम्भात की खाड़ी तक उनका विस्तार था । अब कोई भी आर्य राजा अकेला हैहयों को पदाक्रान्त न कर सकता था । कार्तवीर्य अर्जुन समूचे मध्यभारत का स्वामी था । उसकी विपुल पोतवाहिनी और अजेय हय - दल थे। जमदग्नि का विवाह इक्ष्वाकु वंश की राजकुमारी रेणु के साथ हुआ था और रेणु की सगी बहन सहस्रार्जुन को ब्याही थी । इस प्रकार जमदग्नि और सहस्रार्जुन रिश्ते में साढू थे ।
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