59. अश्मपुरी का युद्ध लंका- द्वीप के पूर्वी अंचल में कुछ अश्म - द्वीप - पुंज थे। ये द्वीप बहत छोटे - छोटे थे और इनमें से अनेक में मनुष्यों की आबादी नहीं थी । कुछ द्वीप तो ऐसे थे, जिनका पता ही नाविकों को न था । पर कुछ, ऐसे भी थे, जहां जाते हुए अच्छे साहसी नाविक भी डरते थे। क्योंकि ये सभी द्वीप- पुंज चुम्बक पत्थर के द्वीप थे , इसी से ये सब अश्म - द्वीप - पुंज के नाम से प्रसिद्ध थे। बहत कम नाविक वहां जाने का साहस कर पाते थे। द्वीपों के पास जाते ही नौकाओं के अंशफलक बिखर जाते थे। इन्हीं द्वीप - पुंजों में से एक में अश्मपुरी बसी थी । पहले यह पुरी राक्षसों ही की थी , परन्तु प्राचीन काल से उसमें दैत्य -दानव ही रहते थे । विद्युज्जिब जब कालिकेयों का नेता बना, तो उसने पुरी को कुछ समृद्ध बनाया । इस समय अश्मपुरी में बीस सहस्र कालिकेय बस रहे थे और इन सबका नेता विद्युज्जिब था । अश्मपुरी समुद्र के जिस अंचल में बसी थी , उसके आसपास का समुद्र बहुत गहरा था और वहां समुद्र में जल -दानव बहुत थे। उनके भय से भी बहुत कम नाविक वहां आने का साहस करते थे। यह जल -दानव बड़ा शक्तिशाली प्राणी था । इसकी आकृति विलक्षण और भयानक होती थी । इस जीव के आठ पैर उसके सिर पर होते थे। इन आठ विशाल पैरों के साथ दो रस्सीनुमा मूंछे भी होती थीं । इसकी आंखें बड़ी ही भयानक होती थीं । इन जल - दैत्यों के आठों पैर बड़े ही मजबूत और भयानक होते थे । वे इन्हीं से अपना शिकार पकड़ते थे । इनका आकार छ:- सात गज का होता था । इस जल- दैत्य की सभी बातें निराली थीं । यह आगे को न चलकर पीछे की ओर चलता था । यह जन्तु उस काल में , जब जहाज , बिना यन्त्र के चलते थे, उनके लिए काल ही माना जाता था । यह जल - दानव अपने मजबूत पांवों से तरणी को जकड़ लेता था और बात - की -बात में उसका मस्तूल तोड़ डालता था । एक विचित्र बात यह थी कि उसके शरीर में से कस्तूरी के समान सुगन्ध निकलती थी । यह दैत्य अपनी लम्बी भुजाओं में कई- कई मनुष्यों को एकबारगी ही लपेट तथा तोते के समान विराट चोंच खोलकर उन सबको एकबारगी निगल जाता था । __ _ दूसरी विशेषता इस द्वीप की , वन -मनुष्यों की थी । ये एक जाति के गुरिल्ले ही थे । इन वनमानुषों का आकार दो गज से भी अधिक होता था और इनका शरीर इतना सुगठित और मोटा -ताजा होता था कि देखने पर ये बिल्कुल भयानक दैत्य लगते थे। इनके अंग और जबड़े अत्यंत मजबूत होते थे और छोटे -से - छोटे वनमानुष में दस आदमियों का बल होता था । इनका देह - भार साठ मन तक होता था । इनके सर्वांग पर बड़े- बड़े काले बाल उगे होते थे। सिर पर कुछ लालिमा लिए लाल बाल होते थे। उनका भरा हुआ मुंह, चपटी नाक और बेढंगी आंखें होती थीं । जब ये अपना मुंह खोलते थे, तो उनकी विकराल दाढ़ें स्पष्ट दीख पड़ती थीं । ये जीव दो - चार एकत्र होकर जब बस्ती की ओर आते तो कृषि चौपट कर डालते थे। यह पशु दस - दस की संख्या में पारिवारिक ढंग पर रहता था । वह बड़ा ही विकट ,
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२०४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।