" मैं शस्त्र नहीं उठाऊंगी। " " हन्त , तो मुझे शस्त्र के बिना ही तेरा वध करना पड़ेगा। " उसने हाथ का शूल दूर फेंक दिया और सिंह की भांति उछलकर विज्जला को कण्ठ से पकड़कर भूमि पर गिरा लिया । विजला ने छूटने की बहुत चेष्टा की , बहुत छटपटाई, पर विद्युज्जिब उसे उसी प्रकार घसीटकर अलिन्द के एक एकान्त स्थल में ले गया , जैसे बाघ अपने शिकार को ले जाता है । फिर उसने उसके सिर के सब बाल नोच डाले। उसके मुंह में हाथ डालकर मुंह चीर दिया । रक्त की धार बह चली। विज्जला छूटने को बहुत छटपटाई, पर विद्युज्जिह्व के लौहदण्ड से वह पार न पा सकी । अलिन्द में वह उसे कभी इधर से उधर घसीटता , कभी उठाकर पत्थर पर इस प्रकार पटकता जैसे धोबी कपड़ा पटकता है और कभी सिर से ऊपर उठाकर दूर फेंक देता । फिर भी विज्जला के कठिन प्राण नहीं निकले । वह आर्तनाद करती रही । अन्त में विद्युज्जिह्व ने अपना चरण उसके वक्ष पर रखकर जोर से दबा दिया । पसलियां चर्राकर टूट गईं और एक बार रक्त - वमन करके वह पति -हत्यारी सुन्दरी दानवी ठण्डी हो गई । परन्तु विद्युज्जिह्व का क्रोध तो अभी भी शान्त न हुआ । उसने मृत माता का एक चरण पैर से दाब , दूसरे को हाथों में उठा बलपूर्वक उसे दो खण्डों में चीरकर दोनों खण्ड द्वार के बाहर दोनों दिशाओं में बलि - मांस की भांति फेंक दिए । चेटियां यह घोर कृत्य देख , भय से चीखती हुई भाग खड़ी हुईं , परन्तु इसी समय बहुत - से सशस्त्र राक्षसों के साथ सुकेतु राक्षस ने उसे घेर लिया । विद्युज्जिह्व ने उछलकर अपना शूल घुमाया। अब उस अकेले का अनेकों से तुमुल संग्राम होने लगा। राक्षसों की सेना कोलाहल करती बढ़ती ही चली गई , परन्तु विद्युजिह्व के विकराल शूल के सामने राक्षस ठहर न सके । इसी समय सहस्रों कालिकेयों ने राक्षसों को चारों ओर से घेरकर काटना आरम्भ कर दिया । देखते - ही - देखते सब राक्षस काट डाले गए। सुकेतु का विद्युज्जिह्व से तुमुल द्वन्द्व युद्ध हुआ । अन्त में विद्युज्जिह्व का शूल उसके वक्ष को पार कर गया । अब उसका सिर काट और अपने पिता का शव कन्धे पर रख विद्युज्जिह्व अपने कालिकेय योद्धाओं के साथ समुद्रतीर की ओर लौटा , जहां उनकी नौकाएं उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं ।
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