“ वह छिपकर रहता है। कहां रहता है, मैं नहीं जानती। वह अपनी सुविधानुसार आता है । वह जब तक आए हमें प्रतीक्षा करनी होगी । " “ क्या वह तुझ पर विश्वास नहीं करता ? अपने भेद छिपाता है ? " __ “ उसने अपना गुप्त स्थान मुझे बताना चाहा था । पर मैंने ही उसे रोक दिया । उसे अपने सौतेले बाप का भय है, जो उसे मारकर अपनी राह का कंटक दूर करना चाहता है । फिर लंका में कालिकेयों का कौन मित्र है ? कालिकेय तो राक्षसों के शत्रु हैं ही । उसने अपनी कुछ गुप्त बातें मुझे बताई हैं । एक प्रकार से उन्हीं पर उसका जीवन - मरण निर्भर है । मैंने ही उसका गुप्तवास नहीं जानना चाहा। " " तब तो उसके आने तक हमें रुकना ही होगा। " “ किन्तु क्या रक्षेन्द्र उसका मणिमहालय में स्वागत करेंगे? " " अवश्य बहन , क्यों नहीं ! " “ और महिषी ? " “ मैं भी बहन । हम दोनों ही रक्षराज-नन्दिनी के कल्याण- अभिलाषी हैं । " “ उपकृत हूं । आप्यायित हूं । आप दोनों मेरे माता-पिता हैं । मैं आपकी शरण हूं! "
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