“ राक्षसों की संस्कृति ही स्वतन्त्र भावनामूलक है । राक्षसों का प्रत्येक जन अपने जीवन में स्वतन्त्र है। ” " तो मैं विद्युज्जिह्व को प्यार करती हूं। उससे मैं विवाह करना चाहती हूं। " “ और मेरा यह कहना है कि प्यार- प्रीति के अनुभव लेने के लिए क्यों न सूर्पनखा किसी तरुण के साथ भाग जाए , पीछे विद्युजिह्व या उस तरुण से , जो उसे रुचे, ब्याह कर ले । ” रावण ने मन्दोदरी को लक्ष्य करके कहा । " बुरा क्या है ? परन्तु ऐसा कोई पुरुष रक्षेन्द्र ने सोचा है क्या ? " " हमारा गुल्मनायक प्रजंघ ही है, उसी को मैं प्राथमिकता दूंगा । " " सूर्पनखा के लिए यह उत्तम होगा । " “ पर मैं किसी के साथ भागू क्यों ? मैं जिसे प्यार करती हूं , उससे ब्याह करूंगी। " “ब्याह करने पर उसने तेरे जीवन को संतप्त किया तो ? " “ ऐसा क्यों होगा भला ? " बहुत होता है बहन, तुम भोली हो , समझती नहीं हो । तुम जैसी बालिकाएं इसी प्रकार प्रथम प्रेम के ज्वर में ब्याह कर बैठती हैं । फिर एक पुरुष को छोड़कर दूसरे के साथ भाग खड़ी होती हैं । ” मन्दोदरी ने प्रेम -मुद्रा से कहा। “ यही मैं कहता हूं -ब्याह के पीछे भागने से ब्याह से पहले भागना अच्छा है । " " तो भागना ही है तो विद्युज्जिह्व ही क्या बुरा है? " " हम कैसे कहें ! हमने तो उसे देखा नहीं । ” रावण ने कहा । मन्दोदरी ने गम्भीर होकर कहा - “ यौवन का आरम्भ प्रेम ही से तो होता है, परन्तु युवक और युवतियां केवल जीवन को प्यार ही करना जानते हैं , उन्हें संसार का अनुभव कुछ नहीं होता , इससे उनका प्यार खोखला हो जाता है और जीवन निराश। विवाह एक दुःखद घटना हो जाती है । सूर्पनखा को मैं उससे बचाना चाहती हूं, उसने अभी किसी तरुण को प्यार की दृष्टि से देखा ही नहीं है। " कुछ रुककर उसने फिर कहा - “ उसे तरुणों के प्यार का अनुभव होना चाहिए , प्यार के घात - प्रतिघातों से भी उसे अपरिचित न रहना चाहिए । फिर वह भी तो भूल कर सकती है । यह कितना अपमानजनक होगा ,सोचो तो ! हमारा विश्व -विश्रुत प्रतिष्ठित रक्ष -कुल है और सूर्पनखा सप्तद्वीपपति रक्षराज की सगी बहन है। वह आत्मविश्वास से भरपूर है , परन्तु उसकी दृष्टि एकांगी है। अभी वह दुनिया के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं जानती । उसके विचार भावकता से ओत -प्रोत हैं । उसने अपने निकटतम वातावरण से एक योजना स्थिर कर ली है और वह समझती है कि वह सब कुछ ठीक -ठाक कर रही है। पर अभी वह बच्ची ही तो है। उसका हृदय तो अभी सो ही रहा है । एक दिन वह जगेगा तो वेदना के हाहाकार से भर जाएगा । इसी से मैं नहीं चाहती कि वह मूर्ख, भावुक लड़कियों की भांति उसी तरुण से ब्याह कर ले जिसे उसने प्रथम बार ही जरा - सा जाना हो और जरा- सा ही प्यार किया हो । ” इतना कहकर मन्दोदरी ने सूर्पनखा की ओर देखा । रावण ने उसका समर्थन करते हुए कहा " तभी तो मैंने कहा कि वह किसी तरुण के साथ कुछ दिन के लिए पहले भाग
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