" परन्तु बात बहुत आगे बढ़ने से पूर्व हमें कुछ करना होगा। " “ अच्छा , विद्युज्जिह्व की ओर तो तुम्हारा संकेत नहीं है, प्रिये ? " “निस्संदेह, सूर्पनखा उससे प्रेम करती है । ” “ बुरा क्या है, विद्युज्जिब एक उच्चवंशीय तरुण दानवकुमार है । सुन्दर और सभ्य है । यदि वह उससे प्रेम करती है तो मैं उसे अनुमति दूंगा । " “ पर मैं समझती हूं कि वह लड़की अभी प्रेम के तत्त्व से नितान्त अनभिज्ञ है। वह तो उससे विवाह करने को आतुर हो रही है। " " तो मैं उसका अभिनन्दन करता हूं । क्यों न वे परस्पर दम्पति बन जाएं ? " “ आह, पर मुझे आपत्ति है, स्वामिन्! ” । “ क्यों प्रिये, यदि हमारी बहन सूर्पनखा विद्युजिह्व को प्यार करती है, तो हमें क्यों इस संबंध में आपत्ति होनी चाहिए ? " क्या रक्षेन्द्र ने उसे देखा है ? " " नहीं , तुमने? " “मैंने भी नहीं, वह सदैव छिपकर गुप्त रूप से मिलता है । " " तो न सही हम उससे परिचित । सूर्पनखा तो उससे भलीभांति परिचित है। और यह उसी का विषय भी है। " “ यही तो बात है। " “ क्या सूर्पनखा से तुम्हारी इस संबंध में कुछ बात हुई है " " बस इतनी ही कि वह उसे प्यार करती है । " " बस , तो ठीक है। ” “ परन्तु हमें अपना दायित्व देखना है, राक्षसेन्द्र, हमारे रक्ष -कुल की एक मर्यादा है । " “निस्संदेह, पर तुम्हारा अभिप्राय क्या है? " " वह अभी निपट बच्ची है, नहीं जानती, प्रेम का जीवन पर कितना भार पड़ता है । यह बात तो हमारे ही सोचने की है। " “ परन्तु उसका ठौर -ठिकाना कहां है ? वह चोर की भांति आता है तथा दस्यु की भांति जंगलों में भटकता रहता है । “ उसे आखेट में अभिरुचि है, साहसिक भी है वह। ” “ ऐसे तो दस्यु होते ही हैं । " । " इसमें कदाचित् राज - परिवार की ओर से अविनय हुआ है। " " कैसे? " " मातामह सुमाली ने मुझे बताया था । " “ कि हमने उसका महालय में स्वागत नहीं किया! " " तो प्रिये , तुम भी मातामह से सहमत रहीं ? ” “ क्यों नहीं , मधु का अविनय क्या हमारी शिक्षा के लिए यथेष्ट नहीं ? हम कैसे किसी अपरिचित अज्ञात कुल का अभिनन्दन कर सकते थे, जबकि हमने देखा कि वह राजकुमारी पर दृष्टि रखता है ? "
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१७५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।