" काश्यप सागर- तट पर क्या तेरा पुर है ? " " वहां मातृकुल रहता है। " "किस पुर में ? ” “हिरण्यपुर में । " " तू क्या असुर - कुल से है ? " " नहीं , दैत्य - कुमारी हूं, और तू ? " “मैं ऋषिकुमार हूं। पर मातृकुल मेरा भी दैत्यकुल से है। " " और पितृकुल ? ” " आर्य -व्रात्य। ” “ कहां का है तू ? " “ आंध्रालय का । " " तो यहां बलिद्वीप में कैसे घूम रहा है ? " " तेरे ही लिए ! तरुण ने हंसकर उसे और कसकर अपने वक्ष से सटा लिया । तरुणी ने उसे ठेलते हुए कहा - "धिग्विपन्न , सत्य कह । " “ अब तो सत्य यही है, मैं तुझ पर विमोहित हूं। " " कब से ? ” " इसी क्षण से । ” " तो उधर चल । " “ क्या ग्राम में ? " " नहीं, उपत्यका के उस अंचल में । " “ वहां क्या है ? " " विजन वन है, सघन छाया है, एक सरोवर है, उसमें शतदल कमल खिले हैं । चक्रवाक, सारस का आखेट वहां बहुत है । हिरण भी हैं । आखेट अच्छा होगा । आखेट खाएंगे और रमण करेंगे, चल । " " चल । " दोनों उस गहन वन में घुस गए।
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