मिथुन- रूप में पूजा होती रही है। इन सभी देशों में ऐसे देवताओं की पूजा प्रचलित थी , जिनके सम्बन्ध में कहा जाता है कि उनमें स्त्री और पुरुष दोनों का समान प्रतिनिधित्व था । बाइबिल में आदम , जो पृथ्वी पर आनेवाला प्रथम व्यक्ति है , स्त्री - पुरुष का समान प्रतिनिधित्व लेकर आया । उसमें स्त्री - पुरुष दोनों ही की रचनात्मक शक्ति थी । । गाज़ी में एक प्राचीन सिक्का प्राप्त हुआ है । उस पर मुद्रा अंकित है, जिससे पता चलता है कि देवता अश्वात की दो आकृतियां थीं । इस प्रकार के देवताओं को , जिनमें स्त्री पुरुष दोनों तत्त्व निहित रहते थे, आत्मतुष्ट कहा जाता है । यूनान के अपोलो तथा डायना के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उनमें स्त्री - पुरुष दोनों का समान प्रतिनिधित्व था । बेबीलोन वाले यह विश्वास रखते थे कि सबसे प्रथम जो पुरुष उत्पन्न हुआ, उसके दो सिर थे एक स्त्री का , दूसरा पुरुष का । शरीर में भी दोनों लिंगों की इंद्रियां अंकित थीं । शैव हिन्दू शिव का एक रूप अर्धनारीश्वर मानते हैं । एलोरा की गुहा में अर्धनारीश्वर की एक भव्य मूर्ति है । वैसे भी शरीर का बायां अंग स्त्री का माना जाता है । हिन्दू पत्नियां अर्धाङ्गिनी कहाती हैं । अनेक देशों के पुरातन साहित्य में कहा गया है कि पहले स्त्री - पुरुष जुड़े हुए थे, पीछे पृथक् - पृथक् हुए । ‘ प्लेटो भी इसी धारणा पर विश्वास करते थे। अनेक दार्शनिक बारहवीं शताब्दी तक यही धारणा रखते थे। नृत्य में हाथों की उंगलियों की भाव- भंगिमा और मुद्राओं से विभिन्न यौन संकेत निकलते थे। प्राचीन काल में मिस्र में हाथों को रचनात्मक शक्ति का प्रतीक माना जाता था । तर्जनी से यदि सामने की ओर संकेत कर शेष उंगलियों को मोड़ लिया जाए तो उससे पुरुष लिंग का संकेत होता था । भारतीय नृत्य में हाथ के दोनों अंगूठों को आपस में मिलाकर दोनों हाथों की तर्जनी को मिलाती हुई उंगलियों को सीध में तान देने से योनि का संकेत होता है । यदि दोनों हाथों की हथेलियों को परस्पर मिलाकर , दोनों तर्जनियों को संयुक्त रूप में खड़ा कर दिया जाए , और शेष उंगलियां परस्पर आबद्ध होकर झुकी रहें , तो वे संभोग की भाव-व्यंजना का बोध कराती हैं । शिव के साथ जहां लिंग- पूजन का एकीकरण हुआ, वहां शिव के साथ सर्प - धारण की भी बात है । प्रसिद्ध है कि शिव सर्प को धारण करते हैं । प्राचीन शिव के भित्ति -चित्रों में सांप को अपनी पूंछ निगलते दिखाया गया है, इसका यह अर्थ है कि वह अपने - आप में पूर्ण इकाई है । यूनान के पुराने मठों में जीवित सर्प रखे जाते थे , जिनकी रक्षा की व्यवस्था मन्दिर की देवदासियों के ज़िम्मे होती थी । इन देवदासियों को नागकन्या कहते थे। खासकर अपोलो के मन्दिर में सर्प पाले जाते थे, जहां स्त्रियां नंगी होकर उन्हें खाना खिलाती थीं । गेहंअन सर्प मिस्र के पुराने शिलाचित्रों में अंकित पाया गया है। बेबीलोन में देवी इस्तार के पूजक सर्प की भी पूजा करते थे । भारत में नाग -पंचमी के दिन सर्प की पूजा बहुत दिन से प्रचलित है । अत्यन्त प्राचीन काल में मिस्र, यूनान , भारत , चीन , और जापान के लोग कमल और कमदिनी के फूलों को इसलिए महत्त्व देते थे कि कमल फूलों में स्त्री - पुरुष दोनों का ही प्रतिनिधित्व माना जाता था । कली में स्त्री -भाव और फूल में पुरुष -भाव माना जाता था । इन फूलों से मन्दिर का भी शृंगार होता था । भूमध्यसागर के अनेक देशों के प्राचीन निवासी प्राचीन काल से डायन -योजन के भय से गले में लिंग के आकार का तावीज़ बांधते हैं । भारत में भी ऐसे तावीज़ बांधे जाते हैं । बेबीलोनिया और प्राचीन फ्रांस में लिंग और योनि के
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