रावण का ऐसा सारगर्भित भाषण सुनकर रुद्र बहुत प्रसन्न हुए और रावण के सिर पर हाथ रखकर कहा - " तेरा प्रयत्न स्तुत्य है और मैं तुझसे प्रसन्न हूं । मैं भी देव , दैत्य , असुर सबसे समान प्रीति रखता हूं। " __ " तो मैं आपका अनुगत शिष्य और सेवक हूं । आपने मेरा कल्याणदान किया है , आप मुझे अनुमति दीजिए कि मैं आपको शंकर - कल्याणदाता, कहकर आपकी वन्दना करूं । " इतना कहकर रावण ने घुटनों के बल बैठकर रुद्र के चरणों में सिर नवाया । रुद्र ने दोनों हाथ उठाकर कहा - " कल्याणं ते भवतु ! शिवं ते अस्तु ! ” रावण ने हर्षोन्मत्त हो नाचते हुए कहा - “ आप देव हैं , देवाधिदेव हैं , आप शंकर हैं , आप शिव हैं ! " __ और तब सब रुद्रगणों ने , मरुतों ने , गन्धों ने , देवों ने शंकर ! शंकर!! कहकर हर्षनाद किया । फिर रक्षपति रावण का अर्घ्यपाद्य, अक्षत और मधुपर्क से सत्कार किया । रक्षराज के स्वागत- समारोह में दिव्यांगनाओं, अप्सराओं ने नृत्य - गान कर कैलास को मुखरित कर दिया ।
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१५१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।