पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१३९

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42 . किष्किन्धापुरी में वन -पर्वत उपत्यका सबको पार करता हुआ वीरशिरोमणि रावण अन्ततः पम्पा सरोवर पर आ पहुंचा। यहां की भूमि समतल थी । घाट सुन्दर और सुगम थे। सरोवर के नीचे की भूमि बालुकामय थी । असंख्य नीलकमल और रक्तोत्पल उस सरोवर की शोभा बढ़ा रहे थे। वहां पम्पा के जल में विचरनेवाले हंस , कुरर , कारण्डव और क्रौंच आदि पक्षी मधुर स्वर में कूज रहे थे। वे हिंसा को जानते ही न थे। अनगिनत वानर अपनी - अपनी पत्नियों के साथ वहां विहार कर रहे थे। पम्पा के तट पर फलों- फूलों वाले इतने वृक्ष थे कि सरोवर का तट उनसे ढंक गया था । सरोवर के पश्चिम तट पर ही महामुनि मातंग ऋषि का आश्रम था । उसमें एक हजार बटुक वेद पढ़ते थे और ब्रह्मचर्य धारण करते थे। आश्रम में अनेक वानर - कुमार ब्रह्मचारी वेदपाठी थे। अनेक यती , तपस्वी व्रतधारी पुरुष - स्त्री वहां तपस्वी का जीवन बिताते थे। इसी आश्रम में एक अमोघ प्रभावशाली महिला शबरी रहती थी । वह जाति की तो निषाद थी , परन्तु महाज्ञानवती एवं तपस्विनी थी । शबरी का प्रताप उस सरोवर के अंचल में विख्यात था । वह प्रत्यक्स्थली वेदी में तपस्या कर रही थी । सरोवर के सम्मुख ही ऋष्यमूक पर्वत था । यह पर्वत जैसा मनोरम था वैसा ही दुरारोह भी था । इस पर्वत पर सर्प बहुत थे। वन में हाथियों के भी बहुत झुण्ड विचरण करते थे, जो यूथ बनाकर सरोवर के तट पर जल पीने आते थे। पर्वत के अंचल में बड़ी- बड़ी प्राकृत गुफाएं थीं । फल - फूल और कन्द- मूल की तो वहां कमी थी ही नहीं। रावण ने सरोवर में स्वच्छन्द स्नान किया । तृप्त होकर कन्द - मूल -फलों का आहार किया । फिर वह मुनि के आश्रम में गया । महामुनि मातंग ऋषि तथा शबरी ने रावण का आतिथ्य किया । उसे अर्घ्यपाद्य दिया । इसके बाद रावण ने किष्किन्धा नगरी में प्रवेश किया । उस स्वर्ण-नगरी में स्वच्छ, सुगन्धित पवन प्रवाहित था । उसमें विन्ध्य पर्वत के ऊंचे गमन - चुम्बी प्रासाद थे। नगर में अनेक रंगस्थलियां थीं । वानर नागरिक और उनकी पत्नियां सजी हुई पालकियों में इधर उधर आ - जा रहे थे। वानरी महिलाओं की सवारी के आगे सैनिक शंख- ध्वनि करते जा रहे थे। ये सैनिक दैत्यों और दानवों के समान पराक्रमी और वीर थे। बालि के सेनापति का नाम विनत था । वह वीर पर्वत के समान भीमकाय था । वह मेघ की भांति गर्जन करता था । वानरगण विविध स्वर्णाभरण अंग पर धारण किए, स्वर्ण -किरीट सिर पर रखे, बड़ी आन बान से यहां घूम रहे थे। यहां इन्द्रपुत्र महाबलि बालि और सुग्रीव दो भाई राज्य करते थे । बालि का शरीर लोहे के समान कठोर था । जब वह मुदूर लेकर युद्ध में उतरता था , तब बड़े- बड़े योद्धा भी उससे पार नहीं पा सकते थे । वह अब तक किसी वीर से परास्त नहीं हुआ था ।