पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१३१

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39 . सहगमन भूलुण्ठिता मायावती की उपेक्षा कर शम्बर रणक्षेत्र की ओर चल दिया था । जाने से पूर्व उसने मायावती से भेंट भी नहीं की । वह पुंश्चली थी । मानवती और भावकु मायावती पति की इस अवज्ञा , अपने पाप और रावण के अपराध से अभिभूत हो , चैतन्य आते ही मृत्यु की कामना करने लगी । शम्बर को वह प्यार करती थी । शम्बर ने भी माया को सदैव प्राणाधिक समझा था । उसके जीवन में यह प्रथम ही क्षण था जब उसकी अवज्ञा हुई अप्रतिष्ठा हुई। परन्तु वह जितना ही विचार करती, उसे अपना अपराध गुरुतर प्रतीत होता जाता था । उसने यह निर्णय किया कि वह पति से दण्ड की याचना करेगी, फिर अग्नि -प्रवेश करेगी। उसने मौन धारण किया , आहार भी ग्रहण नहीं किया, श्रृंगार और विलास उसने त्याग दिया । वह समरांगण से पति के लौट आने की प्रतीक्षा करने लगी । सूखे मृणाल की भांति वह सुकुमारी मायावती मुरझाकर श्रीहीन हो गई । इसी समय उसे युद्धक्षेत्र से पति के निधन की दारुण सूचना मिली। मायावती सुनकर काठ हो गई। राजमहल क्रन्दन से भर गया । नगरी में विषाद छा गया । उस दिन नगरी में किसी ने दीप नहीं जलाया । किसी ने भोजन नहीं किया । उस दिन पौरवधुओं का श्रृंगार नहीं हुआ । सम्राट् के शव को योद्धा रणांगण से ले आए। प्रतिमागृह में राजशव की प्रतिष्ठा हुई। शव का संस्कार कर , उसे अगरु - कस्तूरी - चन्दन -गोरोचन से चर्चित कर श्वेत कौशेय से आच्छादित कर , उसके चारों ओर सहस्र घृत के दीप जलाए गए। शोकपूर्ण वाद्य गर्भगृहों में बजने लगे। असुर पुरोहितों ने मन्त्रपाठ करना आरम्भ किया । बलि , अर्चना और अन्त्येष्टि के अन्य उपचार सम्पन्न होने लगे । मायावती ने असुरराज- महिषी की गरिमा धारण की । अश्रुविमोचन नहीं किया । सहमरण को सन्नद्ध होकर चिता तैयार करने की आज्ञा दी । मज्जन किया , शृंगार किया , अंगराग लगाया और मंगलचिह्न अंग पर धारण किए। फिर वह पति के सिर को गोद में लेकर बैठ गई । अगरु और चन्दन की चिता रचकर तैयार की गई थी । घृत और कपूर स्थान -स्थान पर उसमें रख दिए गए थे। असुर - पुरोहित मन्त्रपाठ कर रहे थे, और असुर - प्रमुख बलि - पशु ला - लाकर डाल रहे थे। अभी रावण अन्धकूप में बन्दी था । मायावती ने उसे बन्धनमुक्त करके अपने सम्मुख लाने की आज्ञा दी । सम्मुख आने पर मायावती ने कहा - “ राक्षसेन्द्र, अब तुम अपनी प्री को लौट जाओ, मैं तुम्हें क्षमा करती हूं और तुमसे क्षमा -याचना करती हूं । क्षमा करती हूं तुम्हारे अपराध - अविनय - अनीति - आचरण के लिए और क्षमा -याचना करती हूं कि अतिथि और आत्मीय से मेरे पति ने विग्रह किया , इसलिए इस असुरपुरी में तथा असुरराज- महालय में तुम्हारे लिए कुछ भी अदेय नहीं है। रत्न , मणि , माणिक्य , दासी , दास जो कुछ तुम्हें रुचे, ले जाओ। तुम मेरी छोटी बहन के पति हो , मुझे उसी के समान प्रिय हो , जाओ मेरा आशीर्वाद मन्दोदरी से कहना । और कहना - उसकी बहन ने उसके लिए सत्पथ