38. शम्बर - संग्राम मायावती की ओर ध्यान देने का शम्बर को समय नहीं मिला । इसी समय चर ने उसे सूचना दी कि देवों और आर्यों की सेनाएं वैजयन्तीपुरी की सीमा लांघ चुकी हैं । गिरिव्रज में आ पहुंची हैं । शम्बर ने भी तत्क्षण ही असुरों को सन्नद्ध होने का संकेत किया । भेरी , मुरज और शंख बजने लगे । दुंदुभि धमक उठी । हाथी चिंघाड़ने लगे । घोड़े हिनहिनाने लगे । असुरवाहिनी बरसाती नदी के वेग के समान दुर्मद शत्रुओं का दर्प चूर्ण करने बढ़ चली। सिंहल के विराट हाथी पर छत्र - चंवर लगाकर असुर - सम्राट् बैठा। वैजयन्तीपुरी और गिरिव्रज के बीच का मार्ग सेना से आपूर्यमाण हो गया । उसकी सेना में दस हजार रथ और साठ हजार योद्धा असुर थे। उसके मित्र, बान्धव और सेनापतियों में हृष्टरोमा , महाकाम , सिंहदंष्ट्र प्रकम्पन , तन्तुकच्छ, दुरारोह , सुभाय, वज्रपंजर, धूम्रकेतु, प्रमथन और विकटाक्ष अत्यन्त पराक्रमी थे। छत्तीस छत्रधारी राजा असुर - सम्राट के नीचे युद्ध करने जा रहे थे । गिरिव्रज की उपत्यका में पांचालपति दिवोदास और महाकोशल स्वामी के राजसिंह आर्येन्द्र दशरथ अजेय की संयुक्त वीरवाहिनी शत्रु की प्रतीक्षा कर रही थी । दिवोदास की सेना में देव , नाग, गन्धर्व और आदित्य आदि सभी सुभट थे। सुबाहु, निर्घात , मुष्टिक, गोहर , प्रलंब, प्रमाथ, कटकपिगल आदि एक सहस्र अर्धरथ थे। अंकुटी, सोमिल , देवशर्मा, पितृ शर्मा, उग्रभट,महाभट , कुमारक, वीरस्वामी, सुराधर ,भण्डीर,सिंहदत्त , क्रूरकर्मा, शबरक , हरदत्त , आदि अर्धसहस्र पूर्णरथ थे। यज्ञसेन , इन्द्रवर्मा, विरोचन , कुम्भीर , दर्पित , प्रकंपन आदि तीन सौ द्विरथ और बाहुंशाल , विशाख, प्रचण्ड आदि दो सौ त्रिरथ थे। प्रवीर , वीरवर्मा, अमराम , चंद्रदत्त , सिंहभट, व्याघ्रभट आदि एक सौ पंचरथ थे। उग्रवर्मा अकेला षड्रथ था । राजा सहस्रायु का पुत्र शतानीक महारथों के यूथ का स्वामी था । इनके अतिरिक्त महारथों के यूथपति , अतिरथों के यूथपति , पूर्णरथों के यूथप अनेक थे। इन सब यूथपतियों के अधिपति अयोध्यानाथ दशरथ थे। दोनों ही पक्षों के भट आमने - सामने हो युद्ध करने को विकल हो उठे । आर्यों के प्रधान सेनापति ने महाशुचि व्यूह का निर्माण किया । उस व्यूह के दक्षिण पाश्र्व पर साठ अतिरथ यूथप और वाम पाश्र्व में साठ पंचरथ यूथप अपने यूथों सहित आसीन हुए । मध्य में गज - सैन्य और केन्द्र में पांचालपति दिवोदास और उसकी देवसेना । अग्रभाग में दशरथ अपने दस सहस्र अतिरथों के साथ। शम्बर ने अपनी सेना का अर्धचन्द्र व्यूह रचा। उसके मध्य में गज - सैन्य के साथ वह स्वयं रहा । व्यूहबद्ध होने के बाद ही दोनों सेनाओं में रणवाद्य बज उठे । देखते - ही -देखते दोनों ओर से शस्त्र चलने लगे । जय - जयकार का महाशब्द होने लगा। बाणों से आकाश छिप गया । शस्त्रों के परस्पर टकराने से आग निकलने लगी । हाथी , घोड़े और सुभट मर - मरकर गिरने
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१२८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।