उपनिवेश भी था , जो गोदावरी के तट पर एक मनोरम स्थान पर था । यह स्थान प्राकृतिक सौन्दर्य से ओत -प्रोत था । वहां अनेक पर्वतीय गुफाएं थीं । इन गुफाओं में अनेक ताल , तमाल , खजूर , कटहल , आम , अशोक , तिलक, केवड़ा , चम्पा , चन्दन , कदम्ब , लकुच, धर्व, अश्वकर्ण, खैर , शमी , पलास और बकुल के सघन वन थे। वहां हंसों, सारसों और जल कुक्कुटों का कलरव परिपूर्ण रहता था । रावण ने भी अपनी बहिन सूर्पनखा के नेतृत्व में दण्डकारण्य में एक उपनिवेश स्थापित किया था , यद्यपि वास्तव में वह था सैनिक- सन्निवेश । ये राक्षस केवल अपनी संस्कृति का प्रचार बलात् करते और वहां के लोगों को राक्षस बनाने की चेष्टा करते थे। रावण की आज्ञा युद्ध करने की न थी । इसी कारण यद्यपि यहां खर - दूषण चौदह हजार राक्षसों के साथ रहते थे , परन्तु वे लोग लड़ते-भिड़ते न थे। केवल ऋषियों के यज्ञों में आकर बलि -मांस बलात् डालते , उन्हें पकड़ ले जाते , उनकी बलि देते तथा नरमांस खाते थे। रावण दण्डकारण्य की सुषमा पर मोहित हो गया । इस समय शरद् ऋतु बीत गई थी और हेमन्त आ गई थी । परम रमणीय गोदावरी के निर्मल जल में रावण स्वच्छन्द विहार करता और वहां की स्वस्थ वायु में स्फूर्तिलाभ करता था । इस समय वहां वन उपवनों की शोभा भी निराली हो रही थी । सूर्य दक्षिणायन थे। यह काल हिमालय की ओर बढ़ने योग्य न था । वहां की वायु समशीतोष्ण थी । हेमन्त में रात्रि अधिक अन्धकारयुक्त हो जाती है । रात्रि का समय भी दिन से बढ़ गया था । चन्द्रमा का सौभाग्य भगवान् भास्कर ने हरण कर लिया था । कोहरे तथा पाले के कारण पूर्णिमा की रात्रि भी मलिन - धूमिल - सी प्रतीत होती थी । वन -प्रदेश की शस्य -श्यामला भूमि सूर्य के उदय होते ही सुहावनी प्रतीत होने लगती थी । इस समय सूर्य आकाश पर चढ़ जाने पर भी चन्द्रमा के समान प्रिय लगता था । मध्याह्न का सूर्य भी प्राणियों को प्रिय होता था । जल इतना शीतल हो गया था कि गजराज प्यास लगने पर जब अपनी सूंड जल में डुबाते थे, तब तुरन्त ही बाहर निकाल लेते थे। जल के पक्षी जल के समीप बैठे हुए भी उसमें चोंच डालने का साहस नहीं कर सकते थे। शीत के कारण वन में फल- मूल की कमी हो गयी थी । नदियां कोहरे के कारण ढकी - सी दीख पड़ती थीं । सरोवर में कमल - वन श्रीहत हो गए थे। रावण इन सब प्राकृत दृश्यों का आनंद लेता तथा छद्म वेश में ऋषियों के उपनिवेशों में आता - जाता , मतलब की बातों की खोज - खबर लेता रहता था । इसी प्रकार उसने दण्डकारण्य में रहते हुए आर्यावर्त और भरतखण्ड के राज्यों का बहुत - सा ज्ञान सम्पादन कर लिया था ।
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