33. दण्डकारण्य रणशास्त्र और नीतिशास्त्र का महापण्डित रावण जब दण्डकारण्य और नैमिषारण्य में अपने सबल सैनिक - सन्निवेश स्थापित कर चुका और समूचे भरतखण्ड और आर्यावर्त एवं देवभूमि में अपने राक्षसों के जाल फैला चुका , तो वह अपने नाना सुमाली को लंका का प्रबन्ध सौंप एकाकी ही अपना परशु हाथ में ले चुपचाप छद्य - वेश धारण कर भरतखण्ड में प्रविष्ट हुआ । प्रथम उसने दण्डकारण्य में घूमना आरम्भ किया । इस महावन का नाम महाकान्तार भी था । यह अति दुर्गम वन था । इसका प्राकृत सौन्दर्य भी अपूर्व था । वन में बड़े-बड़े पर्वत - शृंग , झरने , झील और नदी- नाले थे। दक्षिणारण्य में अभी तक दण्डकारण्य ही ऐसा स्थान था , जहां बहत विरल बस्ती थी तथा जहां राक्षसों का प्राबल्य था । यहीं रावण की बहिन सूर्पनखा खर - दूषण तथा चौदह सहस्र राक्षस सुभटों के साथ रहती थी । इसके अतिरिक्त यहां कुछ और भी विकट राक्षस थे, जिनमें एक प्रबल पराक्रमी तुम्बुरु गन्धर्व था , जिसे कुबेर ने कुद्ध होकर लंका से निकाल दिया था और अब वह यहां दण्डकारण्य में विराध नाम धारण कर विकट राक्षस की भांति रहता था । वह बड़ा धूर्त , नरभक्षी, साहसी तथा दुराचारी राक्षस था । रावण और सूर्पनखा की आन में वह निर्भय विचरण करता हुआ, ऋषियों को तंग करता तथा अवसर पाकर उन्हें मार भी डालता था । ऐसे ही और भी अनेक राक्षस थे। इसके अतिरिक्त इस वन में बाघ, सिंह, शूकर , भैंसा, गैंडा आदि हिंस्र जन्तुओं की कमी न थी । फिर भी यहां कुछ ऋषिगण अपने आर्य उपनिवेश स्थापित किए हुए थे, जिनमें प्रमुख शरभंग और सुतीक्ष्ण ऋषि थे। सुतीक्ष्ण ऋषि का उपनिवेश मन्दाकिनी नदी के तट पर एक मनोरम स्थल पर था । यह उपनिवेश बहिष्कृत आर्यों का सबसे बड़ा आश्रमस्थल था । यह उपनिवेश अत्यन्त रमणीय था । यहां सुगन्धित पुष्पों और फलों के लताद्रुम बहुत थे। शीतल स्वच्छ जल के जलाशय थे। दण्डकारण्य के भीतर ही एक उपनिवेश माण्डकर्ण का भी था । माण्डकर्ण राजसी प्रकृति के ऋषि थे। अत : इनके उपनिवेश में सुन्दरी अप्सराएं नृत्यगान करतीं और ऋषि उनके साथ स्वच्छन्द विहार करते थे, परन्तु इस दुर्गम अंचल में सबसे अधिक महिमावान् अगस्त्य का उपनिवेश था । महर्षि अगस्त्य बड़े प्रतापी ऋषि थे। अगस्त्य के आश्रम के पास ही उनके भाई का भी उपनिवेश था । वहां के सभी जन उनकी अगस्त्य के समान ही प्रतिष्ठा करते थे । यों तो ये सभी ऋषि राक्षसों से लड़ते -झगड़ते रहते थे, पर अगस्त्य ने वीरतापूर्वक अनेक राक्षसों का वध कर डाला था , जिनमें वातापि और इल्वल प्रमुख थे। इससे अगस्त्य का आतंक राक्षसों पर भी था । आजकल जहां नासिक है, उसी के इधर - उधर पंचवटी के निकट ही अगस्त्य का उपनिवेश था । पंचवटी में ही विनता के पुत्र श्येनवंशी गरुड़ के भाई अरुण के पुत्र जटायु का
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