32 . रावण का भारत प्रवेश रावण अपनी सब तैयारी कर चुका था । उसने समुद्र मार्ग से अपने सम्बन्ध दक्षिण भारत से जोड़ लिए थे । इसके अतिरिक्त उसने सहस्रों समर्थ राक्षसों को विविध छद्म वेश धारण करके भारत के भिन्न -भिन्न प्रदेशों में भेज दिया था , जो सब जातियों में रावण द्वारा स्थापित राक्षस - धर्म का प्रचार करते तथा लोगों को राक्षस बनाते थे। इस प्रकार इस समय समूचे दक्षिणारण्य में ही नहीं, आर्यावर्त में भी बहुत - से राक्षस घूम रहे थे। अब रावण किसी सुयोग की तलाश में था । वह उसे अकस्मात् ही मिल गया । एक दिन एक दूत रावणा के भाई धनपति कुबेर का संदेश लेकर आया और उसने रावण को कुबेर का यह संदेश दिया कि “ तुम्हारा आचरण और व्यवहार तुम्हारे कुल के योग्य नहीं है । तुम दैत्यों के संग में बहुत गिर गए हो । दक्षिणारण्य में और भरतखण्ड में तुम्हारे भेजे हुए राक्षस बहुत उत्पात मचाते हैं । वे ऋषियों को मारकर खा जाते हैं । यज्ञ में रुधिर - मांस की आहति देते हैं और अनार्यों से मेल रखते हैं । तुम्हारे ये कार्य देवों और आर्यों को अप्रिय हैं । मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूं, तो भी तुमने मेरा बड़ा अपमान किया ; फिर भी मैंने अपनी लंका खुशी से तुम्हें दे दी और तुम्हें अज्ञानी बालक समझकर तुम्हारे अपराध सहे हैं । परन्तु अब तुम्हारे कृत- पाप असह्य होते जा रहे हैं । इससे मैं कहता हूं कि तुम अपने आचरणों को सुधारो और अपने कुल के अनुसार कार्य करो। " . दूत के ये वचन सुनकर रावण ने कहा - “ अरे दूत , तेरी बात मैंने सुनी । न तो तू, न मेरा भाई धनाध्यक्ष कुबेर ही -जिसने तुझे यहां भेजा है मेरे हित को समझता है। तू जो मुझे भय दिखाता है सो मुझे तेरा यह आचरण सह्य नहीं है फिर भी तुझे दूत समझकर सहता हूं और कुबेर धनपति मेरा भाई है इसीलिए उसे नहीं मारता । किन्तु तू उससे जाकर कह कि रावण शीघ्र ही तीनों लोकों को जीतने के लिए आ रहा है। तभी वह तेरी बात का जवाब देगा । " दूत को विदा कर रावण ने अपनी योजना आगे बढ़ाई । सब बातों पर सोच-विचार करके उसने दण्डकारण्य का राज्य अपनी बहिन सूर्पनखा को दिया और अपनी मौसी के बेटे खर और सेनानायक दूषण को चौदह हजार सुभट राक्षस देकर उसके साथ भेज दिया । इस प्रकार जनस्थान और दण्डकारण्य में राक्षसों का एक प्रकार से अच्छी तरह प्रवेश हो गया तथा भारत का दक्षिण तट भी उसके लिए सुरक्षित हो गया । बहुत दिन से लंका में ताड़का नाम की एक यक्षिणी रहती थी । यह दक्षिणी जम्भ के पुत्र सुन्द यक्ष की स्त्री थी । एक पुत्र - प्रसव होने के बाद एक युद्ध में अगस्त्य ऋषि ने सुन्द यक्ष को मार डाला था । अगस्त्य के साथ शत्रुता होने के कारण ताड़का ऋषियों से घृणा करती थी । उसने यक्षपति कुबेर से कहा था कि वह उसके पति के वैर का बदला अगस्त्य से ले, परन्तु कुबेर अगस्त्य का मित्र था । इससे उसने उसकी बात पर कान नहीं दिया । जब
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