सहायता की । उसे जिताया तथा अपने हाथ से उसका राज्याभिषेक किया। परन्तु कुछ काल बाद यहां भी विश्वामित्र ने बाधा उपस्थित कर दी । सुदास ने यज्ञ कराने को विश्वामित्र को बुलाया । यज्ञ के मध्य में वशिष्ठपुत्र शक्ति ने विश्वामित्र को निरुत्तर कर दिया । इस पर विश्वामित्र ने शक्ति को अवसर पाकर जीवित ही जलवा दिया । झगड़ा इतना बढ़ा कि सुदास ने वशिष्ठ परिवार के सौ पुरुषों को मरवा डाला । अब वशिष्ठ खिन्न होकर दक्षिण कोशल - नरेश कल्माषपाद के यहां चले गए। वहां विश्वामित्र ने एक विचित्र युक्ति की । किंकर नामक एक राक्षस को राजा का अन्तरंग मित्र बना दिया । उसके संसर्ग से उस राजा को नर - मांस खाने का चस्का लग गया और उस राक्षस की सलाह में आकर राजा कल्माष- पाद वशिष्ठ के सब पुत्रों को खा गया । वशिष्ठ वहां से भी हटकर अब हस्तिनापुर के राजा संवर्त के राज्य में आए। संवर्त को एक बार सुदास ने युद्ध में हराया था । वही वैर उकसाकर वशिष्ठ ने संवर्त को सुदास से भिड़ा दिया , जिसमें सुदास मारा गया । - इसके बाद वशिष्ठ फिर उत्तर कोशल की अपनी जगह पर आ गए। इस समय तक त्रिशंकु की मृत्यु हो चुकी थी और अब उनके पुत्र हरिश्चन्द्र राज्याधिकारी हुए थे। हरिश्चन्द्र बड़े योद्धा और दानी थे। इन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया । यज्ञ में इन्होंने विश्वामित्र को बुलाना चाहा, परन्तु वशिष्ठ ने इसका घोर विरोध किया । विश्वामित्र ने भी वह सुना । इस अपमान को उन्होंने मन ही में रखा। इसी समय एक विचित्र घटना घटी । हरिश्चन्द्र के कोई पुत्र नहीं हुआ । तब उन्होंने वरुण की उपासना की और प्रतिज्ञा की कि मैं प्रथम पुत्र को वरुण को बलि दूंगा । कालान्तर में पुत्र उत्पन्न हुआ और उसका नाम रोहिताश्व हुआ । परन्तु हरिश्चन्द्र ने वरुण को पुत्र की बलि नहीं दी । इससे उसे जलोदर का रोग हो गया और उसका कारण संकल्प - छेदन से वरुणदेव का कोप ही माना गया । बहुत सोच-विचार के उपरान्त वशिष्ठ की सलाह से यह निर्णय हुआ कि पुत्र के स्थान पर किसी अच्छे कुल का दूसरा लड़का बलि देने से भी वरुणदेव संतुष्ट हो सकते हैं । इस पर खोज - खाजकर भृगुवंशी अजीगत वेदर्षि को लाया गया और उसने एक हजार गाय लेकर अपने मंझले पुत्र शुन : शेप को बलि होने के लिए बेच दिया । संभवत : इस कार्य में वशिष्ठ की अभिसन्धि थी , क्योंकि यह बालक विश्वामित्र का भागिनेय था । बालक विश्वामित्र के पास जाकर बहुत रोया - पीटा और कहा मेरे दुष्ट लालची पिता ने मुझे बलि होने के लिए बेच दिया है, आप मुझे बचाइए । विवश विश्वामित्र यज्ञ में आए। चालाकी से वशिष्ठ इस यज्ञ में ऋत्विज नहीं बने थे। अयास्य - आंगिरस को बनाया था । जब बालक को लाल वस्त्र पहनाकर बलिस्थल पर लाया गया , तो कोई पुरोहित उसे यूप से बांधने को राजी नहीं हुआ। जिस पर अजीगर्त वेदर्षि ही और गायें लेकर इस काम को भी तैयार हो गया और उसने लड़के को यूप से बांध दिया । परन्तु विश्वामित्र के प्रभाव से वरुण ने बिना बलि के यज्ञ की पूर्णता मान ली और शुन : शेप बच गया । बच जाने पर अजीगत वेदर्षि – हा पुत्र ! हा पुत्र! कहकर उसकी ओर दौड़ा । तब उस बालक ने घृणापूर्वक उसे पिता मानने से इन्कार कर दिया और वह विश्वामित्र का पुत्र बन गया ।
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