में फैल गया था । उधर खम्भात से काशी तक उनका विस्तार था । कोई भी अकेला आर्य राजा उनके सम्मुख आने का साहस न कर सकता था । इस प्रकार से समूचे मध्य प्रदेश का स्वामी हैहय कार्तवीर्य सहस्रार्जुन था । इसके राज्य का विस्तार पूर्व में चर्मण्वती ( चम्बल ) नदी , पश्चिम में समुद्र , दक्षिण में नर्मदा और उत्तर में आनर्त तक था । उसकी विपुल पोतवाहिनी सेना थी और उसका हयदल अजेय था । वह प्रतापी , साहसी और मानी था । फिर शर्याति भी उसके साथ थे । हैहयों से हारकर यादव ज्यामद्य अपना पैतृक राज्य छोड़कर मृत्तिकावती में विदर्भ के निकट जा छिपा । सूर्यवंशी राजा बाहु और्व ऋषि के आश्रम में आ छिपा । विश्वामित्र के पुत्र लौहि का कान्यकुब्ज राज्य उन्होंने नष्ट कर दिया । केवल अयोध्या का सूर्यवंशी राज्य इनके उत्पात से बचा रहा । परन्तु परशुराम विश्वामित्र की बहिन के पौत्र और इक्ष्वाकु राजा के दौहित्र तथा गरिमामय भृगुवंश के उत्तराधिकारी थे। वे हैहयों को अपना चिरशत्रु समझते थे और ज्यों ज्यों वे सहस्रार्जुन की ख्याति तथा शौर्य -चर्चा सुनते जाते थे, उनके मन में उससे मुठभेड़ करने की इच्छा प्रबल होती जाती थी । उन्होंने यादवों को अपना साथी बना लिया था । ये दोनों ज्वलन्त पुरुष इन दिनों परस्पर टकराने के लिए शक्ति - संचय कर रहे थे। संयोगवश जगदग्नि की स्त्री रेणुका की बहिन सहस्रार्जुन को ब्याही थी । इस प्रकार यद्यपि जमदग्नि सहस्रार्जुन के साढू थे, फिर भी प्राचीन वंश - वैर तो था ही । अब जो उन्होंने अपनी पत्नी का वध कर डाला , तो इससे क्रुद्ध होकर सहस्रार्जुन ने चढ़ाई करके जमदग्नि का आश्रम जला डाला, गौएं लूट लीं और मनुष्यों को मार डाला । इस पर पिता की आज्ञा से परशुराम ने अपने मौसा - इस विख्यात योद्धा सहस्रार्जुन को सम्मुख युद्ध में मार डाला । कुपित होकर सहस्रार्जुन के उत्तराधिकारी हैहयों ने परशुराम की अनुपस्थिति में निरस्त्र जमदग्नि को मार डाला । इस पर क्रुद्ध हो हैहयों का बीजनाश करने का संकल्प कर परशुराम ने निरन्तर कठिन युद्ध करके हैहय वंश का समूल उच्छेद करके समन्तक तीर्थ में उनके रक्त से पांच कुण्ड भरे ।
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१०४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।