28. आनर्त वैवस्वत मनु के इस पुत्र शर्याति थे। इन्होंने गुजरात प्रान्त में खम्भात की खाड़ी के पास अपना आनर्त राज्य स्थापित किया था । शर्याति बड़े भारी सम्राट् हुए । पीछे इनका ऐन्द्राभिषेक हुआ । शर्याति के पुत्र का नाम आनर्त था , उसी के नाम पर इस राज्य का नाम भी आनर्त रखा गया था । शर्याति की एक पुत्री सुकन्या नाम की थी , जिसे भूगुपुत्र च्यवन ऋषि को ब्याहा गया था । भृगु ऋषि अति प्रतिष्ठित , देव - असुर - पूजित थे। उनके तीनों पुत्र शुक्र , अत्रि और च्यवन विख्यात पुरोहित याजक हुए। शुक्र और अत्रि असुर -याजक थे, शुक्र हिरण्यकशिपु और बलि के पुरोहित थे, जिनके पुत्र सुन्द और मकरन्द को दैत्यपति हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद का शिक्षक नियत किया था । शुक्र वृषपर्वा दानव के भी पुरोहित थे। शुक्र और वृषपर्वा दोनों की कन्याएं देवयानी और शर्मिष्ठा यताति को ब्याही थीं । शर्याति ने च्यवन को अपनी पुत्री सुकन्या ब्याह दी , उन्हें अपना पुरोहित भी बना लिया । च्यवन आनर्त राज्य के दामाद और गुरु बनकर राजसी ठाठ से रहने लगे । शर्याति की गणना वेदर्षियों में थी । च्यवन और सुकन्या की सन्तानों ही में दधीचि , और्व, ऋचीक , जमदग्नि और परशराम उत्पन्न हए । कुछ काल बाद पुण्यजन राक्षसों के राजा मधु ने इस राज्य पर अधिकार कर लिया। मधु यादवों की शाखा में कुन्तराज्य का स्वामी था । मधुपुरी उसी ने बसाई , पीछे जिसका नाम मथुरा प्रसिद्ध हुआ । मधु साहस करके लंका से रावण के रंगमहल में से रावण के नाना सुमाली के बड़े भाई माल्यवान् की पुत्री कुम्भीनसी को चरा लाया था । पीछे रावण के क्रोध से बचने के लिए उसने राक्षस - धर्म स्वीकार कर लिया था । फिर मधु ने हैहयों से भी वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए । अन्त में यह राज्य हैहयों के राज्यों में मिल गया । भार्गव लोग भी शाति की भांति हैहयों के पुरोहित बने रहे । हैहयों ने उन्हें खूब सम्मानित किया तथा धन भी खूब दिया । पीछे हैहयों को निरन्तर की चढ़ाइयों और युद्ध के कारण धन की बड़ी आवश्यकता पड़ी । उन्होंने प्रजा से धन मांगा । इसी भांति भार्गवों से भी मांगा । परन्तु भार्गवों ने धन देने से इन्कार कर दिया । प्रथम तो उन्होंने आनर्त के राज्य पर अपने दायाद होने का अधिकार प्रदर्शित किया , पुरोहित और गुरुपद का भी अधिकार मांगा । बहुत हठ करने पर कहा - “ धन हमारे पास नहीं है। ” इस प्रश्न पर भार्गवों और हैहयों में झगड़ा हो गया , भार्गवों ने अपना धन भूमि में छिपा दिया । हैहयों ने उनके घर खोद डाले । फिर उन्हें लूट लिया । घरों को खोदने से बहुत धन मिला । इस पर क्रुद्ध होकर उन्होंने भार्गवों को मार डाला। उनकी स्त्रियों के गर्भ फाड़ डाले । उनमें केवल एक और्व बचकर निकल भागे और सुमेरु- भूमि में काव्यशुक्र के आश्रय में रहने लगे । पीछे और्व ही के नाम पर सुमेरु - भूमि का नाम अरब पड़ा । उनके साथ ही उनकी सगर्भा पत्नी भी थी । कालान्तर में उसने पुत्र प्रसव किया ,
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