संसारकी जितनी इमारतें हैं ताजका रौज़ा भी उन्हींमेंसे है। इसे शाहजहाँने अपनी प्रियतमा बेगम मुमताज़ महलके लिए बनवाया था। इस बेगमको अरज़मन्द बानू बेगम या नवाब आलिया बेगम भी लोग कहते थे। ताजका चबूतरा ज़मीनसे १८ फुट ऊँचा है। उसपर सङ्गमरमर बिछा हुआ है। चबूतरेका रक़बा ३१३ फुट मुरब्बा है। उसके चारों किनारोंपर एक-एक मीनार, १३३ फुट ऊँचा, है। सुन्दरतामें इन मीनारोंकी बराबरी हिन्दुस्तानमें कोई मीनार नहीं कर सकता। इसके प्रधान मण्डपका घेरा ५८ फुट और ऊँचाई ८० फुट है। उसके बीचमें, सङ्गमरमरकी जालियोंसे घिरा हुआ, एक स्थान है। उसीमें मुमताज़ महल और शाहजहाँकी क़बरें हैं। उसके नीचे एक अंधेरा स्थान है। असल क़बरें वहीं हैं। ऊपरी कमरेमें जो क़बरें हैं वे उनकी नकल हैं। इसमें सङ्गमरमर और सङ्गमूसा इत्यादि उत्तम-उत्तम पत्थरोंके सिवा और कुछ नहीं लगा! इन्हीं पत्थरोंमें रङ्ग-रङ्गके बहुमूल्य नग जड़े हुए हैं। उन्हींको पच्ची करके अनेक तरहके बेल-बूटे बनाये गये हैं। रौजेके चारों तरफ़ तुग़रा हुरूफोंमें कुरानके वाक्य, काले पत्थरोंकी पच्चीकारीके काममें नक्श हैं। इसकी बराबर सुन्दर इमारत हिन्दुस्तानमें दूसरी नहीं। दूर-दूरसे लोग इसे देखने आते हैं। मुमताज़महल बेगमकी मृत्यु दक्षिणमें हुई थी। जब रौज़ा बन गया तब उसकी हड्डियां लाकर रौज़े के भीतर कबरमें रक्खी गई थी। रौज़े के बाईं तरफ़ तीन गुम्बज़की एक मसजिद है। दाहनी तरफ़ उसके जवाबमें एक और मसजिद है। राज़े के सामने एक हौज़ है। उसमें फ़ौवारोंकी एक पाँति है। हौजके पानीमें रङ्ग-बिरङ्गी मछलियाँ हमेशा
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लेखाञ्जलि