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आगरेकी शाही इमारतें

पास शीश महल है। वह नीचेके खण्डमें है। वह शाही बेगमोंके नहानेकी जगह है। उसकी छत और दीवारोंमें आईने जड़े हुए हैं। उनमेंसे कुछ आईने निकल गये हैं। पर जितने हैं उतनेहीसे उसकी चमक-दमक और शोभाका बहुत-कुछ अन्दाज़ा हो सकता है। जिस समय इसमें रोशनी होती रही होगी उस समय यह स्थान तेजोमय हो जाता रहा होगा।

क़िलेके भीतर जहाँगीरी महल भी देखने लायक़ है।

इस क़िलेमें एक बहुत बड़ा फाटक रक्खा है। उसे लोग सोमनाथ का फाटक कहते हैं। १८४२ ईसवीमें वह ग़ज़नीसे आगरेको लाया गया था। लोगोंका ख़याल है कि सोमनाथका फाटक नहीं है। सम्भव है कि ग़ज़नीमें सुलतान महमूदकी कबरका यह फाटक हो।

आगरेके भीतर और पड़ोसकी इमारतें।

जामै मसजिद ११४४-१६४९ इसवीमें तैयार हुई थी। उसे शाहजहाँने बनवाया था। उसके बनवानेका काम शाहजहाँ ने अपनी शाहज़ादी जहान आरा बेगमके सिपुर्द किया था। इसलिए उसका असली नाम मसज़िदे बेगम है। उसके बनवाने में पांच लाख रुपया ख़र्च हुआ था। यह मसजिद लाल पत्थरकी है। इसका फर्श ज़मीनसे २१ फुट ऊंचा है। यह बहुत बड़ी मसजिद है। इसका विस्तार १३०*१०० फुट है। इसमें कई गुम्बज़ और कई मीनार हैं।

ताजबीबीके रौज़े पर इतने लेख लिखे जा चुके हैं कि उसके विषयमें अब अधिक लिखनेकी आवश्यकता नहीं। यह रौज़ा भी यमुनाके किनारे, क़िलेसे कोई डेढ़ मील, है। आश्चर्य पैदा करनेवाली