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गौतम बुद्धका समय

तक और उत्तरमें अफ़ग़ानिस्तानसे लेकर दक्षिणमें माइसोर तक पाये जाते हैं। इन लेखोंसे प्रकट है कि अशोकका राज्य सारे भारतवर्षमें फैला हुआ था। इनमेंसे सहसराम (बङ्गाल), रूपनाथ (मध्यप्रदेश), बैरठ (राजपूताना), सिद्धपुर, जातुंग, रामेश्वर और ब्रह्मगिरि (माइसोर) के अभिलेख अशोकका समय और बुद्धका निर्व्वाण-काल निश्चित करनेमें बड़ी सहायता देते हैं। इन सब शिलालेखोंमें जो बातें खुदी हुई हैं वे आपसमें एक दूसरीसे मिलती-जुलती हैं। कहीं-कहींपर केवल नाम-मात्रका भेद है। ब्रह्मगिरिके अभिलेखका आशय प्रकार है— "सुवर्णगिरिके राजकुमार और शासनकर्त्ताको यह आदेश दिया जाता है—महाराज (अशोक) की आज्ञा है कि मैं कोई साढ़े बत्तीस वर्ष तक साधारण शिष्य था। इतने दिनों तक मैंने कोई साधना नहीं की। परन्तु कुछ ऊपर ६ वर्षसे मैं कठिन साधना कर रहा हूँ। इस समय मुझे मालूम होगया है कि भारतवासियों को जो मैं सत्पथगामी समझता था वह ठीक नहीं। यह साधनाहीका फल है। केवल बड़ा आदमी होनेही से यह फल नहीं मिल सकता। छोटे आदमी भी साधनाके द्वारा स्वर्गीय आनन्दकी प्राप्ति कर सकते हैं। इसलिए यह आज्ञा दी जाती है कि छोटे-बड़े सभी आदमी साधना करके सुफलको प्राप्त करें। मेरे पड़ोसियोंको भी यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये। परलोक-वासियोंने ऐसाही उपदेश दिया है। २५६।"

इस अभिलेखमें जो २५६ की संख्या है उसके अर्थके विषयमें