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लेखाञ्जलि

और उन्हींके मांससे अपना उदर-पोषण करते हैं। वे वालरस (Wallrus) और ह्वेल नामके समुद्री जीवोंका भी शिकार खेलते और उनका भी मांस खाते हैं। उस मांसको वे अपने कुत्तोंको भी खिलाते हैं।

स्कीमो-जातिके लोगोंका कोई धर्म नहीं। हाँ, भूत-प्रेतोंको वे ज़रूर मानते और उनसे डरते भी बहुत हैं। अपने बच्चों और बूढ़ोंकी वे खूब सेवा करते हैं। साफ रहना तो वे जानते ही नहीं। वे शायद ही कभी नहाते हों। जब शरीरपर बहुत मैल जम जाता है तब तेल मलकर उसे थोड़ा-थोड़ा करके उखाड़ डालते हैं। यात्रीलोग वस्त्र, तम्बू, बर्तन आदि चीज़ोंका प्रलोभन देकर उनसे अपना काम निकालते हैं। उन्हें अन्य चीज़ोंकी ज़रूरत भी नहीं। उनकी भाषा विचित्र है। वह किसी भी अन्य भाषासे नहीं मिलती।

स्कीमो लोग अपने ही बनाये हुए घरपर अपना हक़ नहीं समझते। कोई भी जाकर उसमें रह सकता है। ज़मीन खोदकर उसके भीतर घर बनाये जाते हैं। घरके भीतर ज़मीनपर सूखी घास डाल दी जाती है। उसपर सील-मछलीका चमड़ा बिछा दिया जाता है। वही उनका बिछौना है। वे हिरनका चमड़ा पहनते हैं और चिरागमें तेलकी जगह चर्बी जलाते हैं। चिराग एक प्रकारके नरम पत्थरके बनते हैं। उस पत्थरकी चमक चिराग़की लौसे मिलकर इतनी गरमी पैदा कर देती है कि ऐसे चिरागसे भोजन तक पकाया जा सकता है। जिस घरमें एक भी चिराग़ जलता है उसमें रहने वालोंको बहुत कम सरदी लगती है।